उत्तर प्रदेश के जनपद बुलंदशहर में एक ऐसा शर्मनाक मामला सामने आया है जहां देश की सीमाओ की सुरक्षा करने वाला फौजी अपने ही गांव में अपनी ही जमीन की सुरक्षा नहीं कर पाया. एक रिटायर्ड फौजी को अपनी ही जमीन का कब्जा लेने के लिए जिला प्रशासन तथा पुलिस प्रशासन के काटने पड़ रहे हैं चक्कर, देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिक की रिटायर्ड होने के बाद क्या कोई शासन/ प्रशासन में नहीं है न्याय देने वाला, यह पूरामामला बुलंदशहर के थाना खुर्जा देहात के अंतर्गत ग्राम धरपा चुहरपुर तहसील खुर्जा का है. रिटायर्ड फौजी विनोद कुमार पुत्र अनंगपाल सिंह द्वारा अपनी ही जमीन पर कब्जा लेने के लिए प्रार्थना पत्र के माध्यम से उप जिलाधिकारी खुर्जा बुलंदशहर को गाटा संख्या 928क व 928ख मैं हो रहे अवैध अतिक्रमण एवं निर्माण को रोकने के लिए अनुरोध किया गया था, जिस पर नायब तहसीलदार एवं लेखपाल के द्वारा जांच की गई.
नायब तहसीलदार की जांच रिपोर्ट एवं क्या कहा नायब तहसीलदार
जब अवैध निर्माण के संबंध में हमारी टीम के द्वारा नायक तहसीलदार से बातचीत की गई तो उनके द्वारा बताया गया रिटायर्ड फौजी द्वारा जो शिकायत की गई है वह सही है जमीन रिटायर्ड फौजी की ही है दूसरा व्यक्ति उनकी जमीन पर अवैध कब्जा एवं अवैध निर्माण कर रहा है. जब उनसे पूछा गया कि आपके द्वारा इस पर क्या कार्रवाई की गई है? नायाब तहसीलदार ने बताया हमने रिपोर्ट सही का साथ देते हुए रिटायर्ड फौजी के फेवर में ही रिपोर्ट लगाई है और यह जमीन भी उन्हीं की है। लेकिन नायब तहसीलदार चाहते तो रिटायर्ड फौजी की मदद कर उनको न्याय दिला रहे होते, उनके मना करने के बाद भी कब्जा करने वाले लोगों के द्वारा लगातार निर्माण कार्य कराया जा रहा है फिर भी माफियाओं के विरुद्ध कोई भी कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की गई. आखिर ऐसे लोगों को कहां से बल मिल रहा है? आखिर इनको किन का संरक्षण प्राप्त है.

संबंधित लेखपाल की कार्रवाई
संबंधित लेखपाल से इस पर कार्रवाई के विषय में जानकारी की गई तो लेखपाल गौरव शर्मा द्वारा मुद्दे से भटकाने का प्रयास किया गया पूरे प्रकरण की जानकारी होने के बावजूद भी रिटायर्ड फौजी विनोद कुमार की कोई मदद इनके द्वारा नहीं की गई. अगर मदद की गई होती तो एक रिटायर्ड फौजी को एक के बाद एक प्रार्थना पत्र देने नहीं पड़ते. बल्कि पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के स्थान पर सिविल कोर्ट जाने की सलाह दी गई ताकि इस प्रकरण को लंबित किया जा सके। जबकि इस प्रकरण का निवारण तहसील स्तर के अधिकारियों द्वारा ही किया जा सकता था. पीड़ित परिवार की मदद करने की जगह उन्हें गुमराह कर न्यायालय की शरण में जाने की सलाह देना कहां तक सही था.
अधिकारियों ने कैसे किया बचाव
यहां समझने वाली बात यह है कि तहसील स्तर पर पीड़ित परिवार की समस्या का निदान किया जा सकता था और पुलिस की मदद से अवैध निर्माण कर्ता पर उचित कानूनी कार्रवाई कर अवैध निर्माण कार्य को रोका जा सकता था जो कि ऐसा नहीं किया गया। जबकि अवैध निर्माण को रोकने के लिए पीड़ित फौजी बार-बार अधिकारियों से अभीतक गुहार लगा रहा है, फिर भी नहीं रुक रहा था अवैध निर्माण कार्य। कहीं अधिकारियों की तो नहीं है मिली भगत? रिटायर्ड फौजी को न्यायालय की शरण में जाने की सलाह देना अपने को बचाने का क्या था पूरा प्लान. पीड़ित परिवार को गुमराह कर न्यायालय का रास्ता दिखाया गया ताकि कुछ पूछे जाने पर या जवाब देने पर साफ तौर से कहा जा सके यह पूरा मामला न्यायालय के विचाराधीन है और स्पष्ट रूप से अपनी जवाब दही से बचा जा सके, इस तरह की कार्यशैली अधिकारियों की मंशा पर भी सवाल खड़ा करती है.
भू माफियाओं पर क्या सख्त योगी सरकार?
उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का स्पष्ट कहना है कि किसी के द्वारा अवैध तरीके से कब्जाई गई जमीन तथा अवैध निर्माण किया जाता है तो उसकी कमर तोड़ने का कार्य सरकार करेगी किंतु अपने ही देश का रिटायर्ड जवान देश की सेवा करने के बाद घर आता है तो उसी की जमीन पर अवैध कब्जा तथा अवैध निर्माण दबंगों द्वारा कर लिया जाता है जिसके लिए उसे मुख्यमंत्री को न्याय के लिए प्रार्थना पत्र लिखना पड़ता है भी प्रार्थना पत्र लिखना पड़ता है लेकिन यह भू माफिया की जडै इतनी गहरी है कि आज तक भी उस प्रार्थना पत्र पर मुख्यमंत्री कार्यालय से भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ऐसे अधिकारी कर्मचारी सरकार की लगातार छवि को खराब करने में जुटे हुए हैं, मुख्यमंत्री के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद भी सरकार की नीतियों को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
कौन जिम्मेदार
अधिकारियों कर्मचारियों की जानकारी में पूरा मामला होने के बावजूद भी अधिकारियों द्वारा पीड़ित रिटायर्ड फौजी की की जमीन दबंगों द्वारा अवैध रूप से कब्जाई हुई जमीन तथा उस पर हो रहे अवैध निर्माण से मुक्त कराने के स्थान पर पीड़ित पक्ष को न्यायालय जाने का ज्ञान देने वाले ऐसे अधिकारी प्रशंसा के पात्र हैं अथवा कार्रवाई के? यह तो सरकार ही तय करें, एक रिटायर्ड फौजी अपनी जमीन पर हुए अवैध कब्जे तथा अवैध निर्माण की जानकारी तहसील स्तरीय अधिकारियों को तथा चौकी से लेकर के थाना पुलिस एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को देने के बावजूद उसको अपने हक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है जबकि संबंधित अधिकारियों द्वारा की गई जांच में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह जमीन रिटायर्ड फौजी की ही है अवैध निर्माण करता द्वारा की किया जा रहा निर्माण पूर्ण रूप से अवैध है तथा इसके द्वारा अवैध कब्जा किया जा रहा है बावजूद इसके नहीं की गई कोई कार्रवाई पीड़ित रिटायर्ड फौजी को नहीं मिला न्याय आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन.
रिपोर्ट – उदय यादव बुलंदशहर
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