रिपोर्ट – आनंद सागर | लोकेशन – मुजफ्फरपुर :
11 अगस्त… वह दिन जब पूरा देश अपने युवा वीर को खोने के गम में डूब गया था. साल 1908 में इसी दिन 18 वर्षीय आज़ादी के परवाने शहीद खुदीराम बोस ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया और इतिहास में अमर हो गए. जन्म भले ही पश्चिम बंगाल में हुआ, लेकिन उनकी कर्मभूमि रही मुजफ्फरपुर.
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सोमवार को शहीद का 118वां शहादत दिवस खुदीराम बोस सेंट्रल जेल परिसर में देशभक्ति के माहौल में मनाया गया. जेल रंगीन रोशनी से सजी थी, और बज रहा था अमर गीत— “एक बार विदाई दे मां घूरे आशी, हांसी हांसी परबो फांसी…”—वही गीत, जिसे गाते हुए उन्होंने प्राण त्यागे थे.
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सुबह से ही जेल गेट पर लोगों की भीड़ उमड़ी. तिरहुत कमिश्नर राज कुमार, डीएम सुब्रत कुमार सेन, आईजी चंदन कुशवाहा, एसएसपी सुशील कुमार समेत कई अधिकारी श्रद्धांजलि देने पहुंचे.
डीएम ने कहा—“कम उम्र में आज़ादी के लिए दिया गया उनका बलिदान हमें सदैव प्रेरित करता है.”
वहीं एसएसपी ने कहा—“उनके जीवन से सीख लेकर हमें देशहित में कार्य करना चाहिए.”
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जेल रिकॉर्ड के मुताबिक, 11 अगस्त 1908 को सुबह 3:50 बजे उन्हें फांसी दी गई थी. उनके गीत की गूंज से पूरा परिसर ‘वंदे मातरम्’ के नारों से गूंज उठा था, और वे हमेशा के लिए देश के दिलों में बस गए.
मुजफ्फरपुर से आनंद सागर की रिपोर्ट …
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