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Education : गाँव की गलियों से शिक्षा की बुलंदियों तक – मुकेश कुमार का सफर सुनकर आप भी बदल जाएंगे!

गंगा के किनारे बसी पावन धरती… खेतों की सोंधी महक, ठंडी हवाओं की थपकी और आंखों में सपनों की चमक। यही है रामचंद्रपुर दियारा, जहां मिट्टी ने एक बेटे को जन्म दिया, जिसने गरीबी को अपनी ताकत बनाया और संघर्ष को सीढ़ी। टोकरी में टमाटर बेचते- बेचते जिसने आज 1100 बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। यह कहानी है मुकेश कुमार की — उस इंसान की, जिसने साबित कर दिया कि सपने किसी हालात के मोहताज नहीं होते।

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लखीसराय जिले के पिपरिया प्रखंड के रामचंद्रपुर दियारा की पावन धरती पर जन्मे मुकेश कुमार की कहानी उस मिट्टी की तरह उपजाऊ है, जिसमें मेहनत और ईमानदारी के बीज बोए जाएं, तो सुनहरे सपने हकीकत बन जाते हैं।

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बचपन में खेतों की खुशबू और गंगा की ठंडी लहरों के बीच पले-बढ़े मुकेश ने टमाटर की खेती कर, उन्हें टोकरी में भरकर लखीसराय शहर में बेचा। शाम को नाव पार कर वापस अपने गाँव लौटना उनकी दिनचर्या थी। आर्थिक स्थिति सामान्य थी, लेकिन माता-पिता के संस्कार असाधारण। पिता का कहना था — “मेहनत कभी धोखा नहीं देती”, और माँ का विश्वास था — “ईमानदारी सबसे बड़ा धन है”.

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शहर की पढ़ाई भाई के साथ शुरू हुई, लेकिन ज़िंदगी आसान नहीं थी। एक छोटे कमरे, एक चौकी और सीमित साधनों के साथ उन्होंने पत्रिकाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म बेचने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे लोगों का विश्वास बढ़ा और मुकेश ने लिट्टी-चोखा स्टॉल, जूस की दुकान और फिर “परिवार रेस्टोरेंट” जैसी पहल की, जो लोकप्रिय हुई, पर परिस्थितियों के कारण छोड़नी पड़ी।

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रेस्टोरेंट के बाद उन्होंने छात्रों के लिए टिफ़िन सेवा शुरू की, जो न केवल सफल रही बल्कि उन्हें एक संवेदनशील उद्यमी की पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने पटना और बिहार शरीफ़ के सीबीएसई स्कूलों में किताब और यूनिफॉर्म सप्लाई का काम किया, लगभग 500 स्कूलों तक सेवाएं दीं।

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लेकिन दिल में एक सपना हमेशा ज़िंदा था — अपनी जन्मभूमि के बच्चों को बेहतर शिक्षा देना। इसी सोच से लखीसराय के रेहुआ रोड पर लाल इंटरनेशनल स्कूल की स्थापना हुई। चुनौतियाँ थीं, संसाधनों की कमी थी, लेकिन अभिभावकों का विश्वास और बच्चों की मुस्कान उनका हौसला बनी। आज इस स्कूल की दो शाखाओं में लगभग 1100 बच्चे पढ़ते हैं।

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मुकेश कुमार का मानना है —

“गरीबी रुकावट नहीं है, अगर आपके पास हौसला है। असफलता हार नहीं है, अगर आप उससे सीख लें। अपनी मिट्टी का कर्ज़ शब्दों से नहीं, कर्मों से चुकाया जाता है।”

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स्कूल में शैक्षणिक, सांस्कृतिक और खेल प्रतियोगिताओं की झड़ी लगाकर उन्होंने बच्चों को जिला स्तर पर चमकने का मौका दिया। आज, मुकेश न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति बदल चुके हैं, बल्कि सैकड़ों परिवारों के सपनों को पंख लगा रहे हैं।

उनकी कहानी यह साबित करती है कि —
“अगर मेहनत ईमानदारी से की जाए, तो गंगा किनारे की दियारा की मिट्टी से भी सोने की फसल उगाई जा सकती है।”

कृष्णदेव प्रसाद यादव I लखीसराय

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