“गांव की मिट्टी में पला-बढ़ा एक साधारण सा लड़का, जिसके सपनों की उड़ान आसमां छू गई…

दिन में अपनी पढ़ाई,रात में गांव के बच्चों को पढ़ाने का जुनून। ….और जीवन का हर पल समाज की सेवा व भलाई के लिए समर्पित…


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ये कहानी है डॉ.ओमप्रकाश की,जो सुदूर गांव टाल क्षेत्र से निकल कर शिक्षा के शिखर तक पहुंचे। वे श्री मुद्रिका प्रसाद सिंह +2 उच्च विद्यालय सदायबीघा बड़हिया में प्रधानाचार्य रहते हुए अपने ज्ञान और सेवा से नई पीढ़ी के सपनों को आकार दे रहे हैं।” पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल अंतर्गत सकसोहरा स्थित अंदौली गांव के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे डॉ. ओमप्रकाश का जीवन आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है। जिन गलियों में उन्होंने बचपन में मिट्टी से खेलते हुए अक्षर ज्ञान सीखा,वहीं से उनके भीतर शिक्षा के प्रति गहरी लगन और समाज को शिक्षित करने का संकल्प पनपा।
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डॉ.ओमप्रकाश की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही साधारण प्रारंभिक विद्यालय से हुई। मैट्रिक की पढ़ाई सकसोहरा से पूरी करने के बाद उन्होंने इंटरमीडिएट और स्नातक की शिक्षा नवादा से ली। फिर नालंदा खुला विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। यह सफर आसान नहीं था—संसाधनों की कमी,आर्थिक तंगी और ग्रामीण परिवेश की चुनौतियों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

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शिक्षा की ओर उनका झुकाव बचपन से था। सातवीं कक्षा से ही बच्चों को पढ़ाने का शौक था, और आठवीं में पहुंचते ही उन्होंने शाम को गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। दिन में अपनी पढ़ाई और रात में दूसरों को शिक्षा देना—यही उनका दिनचर्या बन गया। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने समाज सेवा में भी खुद को समर्पित रखा।
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मैट्रिक के बाद चिकित्सा क्षेत्र में भी अनुभव अर्जित किया और “तितली सेंटर” के माध्यम से ग्रामीणों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई। साल 2000 में विद्यालय शिक्षा समिति गठन में उत्प्रेरक के रूप में योगदान दिया।2005 में बसपा से अस्थावां विधानसभा चुनाव भी लड़ा।
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2006 में शिक्षा विभाग में चयनित होकर उन्होंने मुंद्रिका प्रसाद सिंह +2 उच्च विद्यालय सदाय बिगहा में एक शिक्षक के रूप में योगदान दिया। उस समय विद्यालय की स्थिति बेहद खराब थी—बुनियादी सुविधाओं का अभाव, कमजोर ढांचा और निराश छात्र। बच्चे स्कूल नहीं आते थे। गांव के लोग भी ध्यान नहीं देते थे। लेकिन डॉ. ओमप्रकाश के उक्त विद्यालय में योगदान के बाद विद्यालय की आधारभूत संरचना और शिक्षा का माहौल ही बदलाव होने लगे। यह सब करने में उन्हें कई कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा। फिर भी वे हार नहीं मानी। अपने अथक प्रयासों और समर्पण से उन्होंने श्री मुद्रिका प्रसाद सिंह हाई स्कूल सदायबीघा को +2 उच्च विद्यालय में परिणत कराने में सफलता पाई।एक आदर्श विद्यालय के रूप में आज वह विद्यालय हर सुविधा से लैस है। बच्चों के सपनों को पंख दे रहा है।
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12 अगस्त 2022 को उन्हें प्रधान प्रधानाचार्य (प्र०प०आ०) के रूप में प्राधिकृत किया गया। इस भूमिका में उन्होंने न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाई बल्कि सरकार की हर प्रतियोगी परीक्षाओं केंद्राधीक्षक जैसे महत्वपूर्ण दायित्व भी सफलतापूर्वक निभाए।
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डॉ.ओमप्रकाश के जीवन का हर मिनट उद्देश्यपूर्ण रहा है। उनका मानना है कि समय सबसे बड़ा धन है और इसका सही उपयोग ही व्यक्ति को ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। उन्होंने अपने कर्म और जीवन जीने की कला से यह साबित दिया कि गांव का एक साधारण बच्चा भी,यदि वह मेहनत और लगन से मिशन मोड में काम करे,तो समाज में बदलाव ला सकता है।
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बच्चों को पढ़ाने में आज भी वे वही जोश रखते हैं जो उन्होंने सातवीं कक्षा में महसूस किया था। उनकी कहानी केवल शिक्षा की नहीं, बल्कि संघर्ष,सेवा और समर्पण की कहानी है—जो हर उस युवा को प्रेरित करती है जो बड़े सपने देखता है और उन्हें साकार करने का प्रबल साहस रखता है।
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वेद ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के माध्यम कौशल युवा कार्यक्रम अंतर्गत मैट्रिक पास छात्रों को तकनीकी,व्यवसायिक एवं प्रबंधन शिक्षा के माध्यम आत्मनिर्भर आदर्श जीवन जीने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं। बिहार के हजारों युवा,नौजवान आज भी उनके नाम,काम के तरीके व्यवहार कुशलता के कायल बने हैं।

कृष्णदेव प्रसाद यादव I लखीसराय
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