पटना: गांधी मैदान की ऐतिहासिक रैलियों के लिए मशहूर पटना इस बार एक अलग नज़ारा देखने वाला है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी 1 सितंबर को यहां किसी बड़ी रैली को संबोधित नहीं करेंगे, बल्कि सड़क पर उतरकर पदयात्रा करेंगे. कार्यक्रम का नाम भी बेहद प्रतीकात्मक रखा गया है – “गांधी से अंबेडकर”.
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अब सवाल उठता है कि आखिरकार राहुल गांधी ने रैली की जगह पदयात्रा क्यों चुनी? इसके पीछे राजनीति के कई दिलचस्प पहलू छिपे हैं.
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भीड़ और तुलना का डर
गांधी मैदान में रैलियों का इतिहास चमकदार है. जयप्रकाश नारायण से लेकर लालू यादव तक, यहां लाखों की भीड़ जुटाकर नेताओं ने अपनी ताक़त दिखाई है. राहुल गांधी के सामने चुनौती थी कि अगर उतनी भीड़ नहीं जुटी तो उनकी तुलना पिछली रैलियों से होगी और यह उनके लिए उल्टा असर डाल सकता था.
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संदेश: संविधान का रक्षक
सीनियर जर्नलिस्टों का मानना है कि राहुल गांधी इस पदयात्रा से यह मैसेज देना चाहते हैं कि वह महात्मा गांधी की तरह आंदोलन की राह और बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को साथ लेकर चल रहे हैं. वह बताना चाहते हैं कि “वोट की चोरी रोको, लोकतंत्र बचाओ”.
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महागठबंधन में ‘गेस्ट आर्टिस्ट’
दिलचस्प बात यह भी है कि इस पदयात्रा में भले ही महागठबंधन के नेता साथ चलें, लेकिन पूरी स्क्रिप्ट कांग्रेस की है. स्थानीय विश्लेषकों का कहना है कि राजद और दूसरे दल इस यात्रा में महज “गेस्ट आर्टिस्ट” की भूमिका निभा रहे हैं, जबकि असली शो राहुल गांधी का है.
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राहुल बनाम बीजेपी
बीजेपी इस यात्रा को लेकर पहले से हमलावर है. दरभंगा से लेकर भोजपुर तक यात्रा के दौरान विरोध और काले झंडे दिख चुके हैं. कांग्रेस का मानना है कि पदयात्रा रैली से ज्यादा सुरक्षित और सटीक मैसेज देने का तरीका है.
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“शहजादे” की छवि तोड़ने की कोशिश
राहुल गांधी पर लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि वह ज़मीनी नेता नहीं हैं. सड़क पर उतरकर, भीड़ के बीच चलकर और “गांधी से अंबेडकर” तक पैदल सफर तय करके वह यह साबित करना चाहते हैं कि वह महज़ ‘शहजादे’ नहीं बल्कि आम आदमी की लड़ाई लड़ने वाले नेता हैं.
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कुल मिलाकर, पटना में यह पदयात्रा महज़ 4 किलोमीटर की है, लेकिन इसके जरिए राहुल गांधी बिहार की राजनीति में लंबी दूरी तय करने की कोशिश कर रहे हैं.