नालंदा: देशभर में जहां दशमी को मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है, वहीं नालंदा की परंपरा बिल्कुल अलग है. यहां प्रतिमाओं का विसर्जन दशमी के दिन नहीं बल्कि अगले दिन एकादशी या पूर्णिमा को भव्य रूप से किया जाता है. इसी परंपरा के तहत शुक्रवार को अलीनगर मोहल्ले में हजारों श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा को विदा करने के लिए धूमधाम से शोभायात्रा निकाली.
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महिलाओं ने बंगाल की तर्ज पर मां दुर्गा को विदाई देने से पहले सिंदूर खेला और खोईच्छा की रस्म निभाई. इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे के माथे और मांग में सिंदूर लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि और पति की लंबी उम्र की कामना करती दिखीं. यह नजारा न केवल भक्तिमय था, बल्कि भावुकता से भी भरा हुआ था.
मोहल्ले के युवाओं ने प्रतिमा को कंधों पर उठाकर विसर्जन यात्रा निकाली. ढोल-नगाड़ों की थाप, जयकारों और भक्ति गीतों ने पूरे क्षेत्र को गगनभेदी बना दिया. श्रद्धालु नाचते-गाते मां दुर्गा को विदा करते नजर आए. सोहसराय, भैंसासुर, बिचली खंदकपर, पुल पर, मोगलकुआं, डाक बंगला मोड़ और बड़ी दरगाह रोड पर भी इस परंपरा का पालन करते हुए विसर्जन समारोह बड़े उत्साह के साथ संपन्न हुआ.
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भारी भीड़ को देखते हुए पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए. भक्तों का उत्साह और जय माता दी के नारों की गूंज पूरे शहर में सुनाई दी.
नालंदा की यह परंपरा सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है. मां दुर्गा के विसर्जन के साथ नालंदा ने अपनी अनोखी परंपरा और समृद्ध संस्कृति को जीवंत बनाए रखा.
वीरेंद्र कुमार, नालंदा.