नालंदा: शारदीय नवरात्र के शुभारंभ के साथ ही नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड के घोषरामा गांव स्थित प्राचीन मां आशापुरी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और इसके पीछे तांत्रिक पूजा-पद्धति को वजह बताया जाता है. नवरात्र के पूरे 9 दिनों के दौरान न केवल गर्भगृह बल्कि मंदिर परिसर में भी महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकतीं.
मां आशापुरी मंदिर पाल वंशकाल में बना माना जाता है और यह मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र है. यहां स्थापित मां दुर्गा की अष्टभुजा प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्व रखती है. स्थानीय लोगों के अनुसार, मंदिर में तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना की जाती है, इसलिए महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगी रहती है. नौ दिनों तक प्रतिदिन नौ देवियों की पूजा होती है और नवमी के दिन विशेष हवन-पूजन के माध्यम से अनुष्ठान संपन्न किया जाता है.
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स्थानीय भक्तों का मानना है कि मां आशापुरी सच्चे मन से की गई हर मन्नत को पूरी करती हैं. इसी वजह से यह मंदिर न केवल बिहार, बल्कि बंगाल, झारखंड, ओडिशा और अन्य राज्यों से भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. भक्तजन यहां दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए दूर-दूर से आते हैं.
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नवरात्र के दौरान मंदिर में पारंपरिक तांत्रिक पूजा की व्यवस्था होती है. पुरुष ही पूजा-अर्चना में शामिल हो सकते हैं और गर्भगृह तक उनके लिए विशेष अनुमति होती है. तांत्रिक पद्धति के अनुसार, पूजा के दौरान महिलाएं मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं कर सकतीं. यह परंपरा स्थानीय लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और इसे वर्षों से बनाए रखा गया है.
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मंदिर की अनोखी परंपरा के अनुसार, नवरात्र के पूरे 9 दिन केवल पुरुष भक्त ही मां की आराधना कर सकते हैं. यह न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है बल्कि मंदिर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान से भी जुड़ा हुआ है. स्थानीय प्रशासन और मंदिर प्रबंधन हर वर्ष नवरात्र में इस परंपरा का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करते हैं.
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श्रद्धालुओं का कहना है कि मां आशापुरी का आशीर्वाद पाना जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता दिलाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. विशेष रूप से नवरात्र के दौरान यहां आने वाले भक्तजन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां की पूजा-अर्चना करते हैं.
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मंदिर की यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राचीन पाल वंशकालीन इतिहास और तांत्रिक संस्कृति का भी प्रतीक है. वर्षों से चली आ रही यह प्रथा यह सुनिश्चित करती है कि मां आशापुरी की पूजा विधिपूर्वक और परंपरा के अनुसार की जाए.
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नालंदा के घोषरामा गांव का यह आशापुरी मंदिर नवरात्र के दौरान देशभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं, लेकिन वे बाहर से दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकती हैं. इस प्रकार मंदिर की यह प्रथा धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
रिपोर्ट: वीरेंद्र कुमार, नालंदा.