नालंदा: जिले के कादी बीघा स्थित प्राचीन काली मंदिर बिहारशरीफ से लगभग 15 किलोमीटर दूर है. यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है और इसे सिद्ध स्थल माना जाता है. खास बात यह है कि यहां भक्तों को प्रसाद के रूप में भभूत (राख) दी जाती है. मान्यता है कि यह राख चमत्कारी है और मां काली भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं.
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मंदिर का महत्व विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान बढ़ जाता है. यहाँ सप्तमी के बजाय अष्टमी के दिन मां काली की प्रतिमा का पट खोला जाता है. इस दिन भक्तों को महाप्रसाद के रूप में राख दी जाती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह राख नि:संतान दंपतियों को संतान सुख देने का आशीर्वाद भी देती है. भक्त यहां श्रद्धा और विश्वास के साथ मन्नत मांगने आते हैं और कई बार अपनी इच्छाओं की पूर्ति होने का दावा करते हैं.

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ग्रामीणों और पुजारियों के अनुसार, नवरात्रि के दौरान अगर कोई शराब पीकर मंदिर में प्रवेश करता है, तो मां काली तुरंत दंड देती हैं. यही कारण है कि भक्त पूरे अनुशासन और आस्था के साथ मंदिर पहुंचते हैं. मंदिर की प्रतिमा का निर्माण पीढ़ियों से एक ही वंश के मूर्तिकार करते आए हैं, जो परंपरा और सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाता है.
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अष्टमी के दिन नालंदा के अलावा पटना, गया, भागलपुर, दिल्ली, मुंबई और कोलकाता से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या यहां पहुंचती है. हजारों लोग राख के इस अनोखे प्रसाद को ग्रहण कर मां से मन्नत मांगते हैं. श्रद्धालु मानते हैं कि यहां हर अरमान पूरा होता है. मंदिर में भक्तों की भीड़ और अनुशासन यह दिखाता है कि आस्था और विश्वास की शक्ति कितनी मजबूत है.

मंदिर सिर्फ पूजा का स्थल नहीं है, बल्कि यह धार्मिक आस्था का जीवंत चमत्कार माना जाता है. यहां भक्त मानसिक शांति, अनुशासन और धार्मिक विश्वास के साथ अपनी प्रार्थनाएँ करते हैं. मंदिर के आसपास की व्यवस्था जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा सुनिश्चित की जाती है. इस दौरान मंदिर में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाते हैं, ताकि श्रद्धालु बिना किसी भय के अपनी पूजा संपन्न कर सकें.
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श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक संतोष प्राप्त होता है. पूजा स्थल का शांत और पवित्र माहौल भक्तों के मन में विश्वास और आस्था को और मजबूत करता है. मंदिर की परंपरा और यहां की धार्मिक गतिविधियाँ इसे बिहार के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल करती हैं.

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भक्तों की बातों में यह भी सामने आया कि मां काली की कृपा से जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है. मंदिर में नवरात्रि के समय विशेष ध्यान रखा जाता है कि कोई भी अनुचित या अशिष्ट व्यवहार न करे. पुजारी और कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करते हैं कि श्रद्धालु पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा में सम्मिलित हों.
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प्रियंका कुमारी, एक श्रद्धालु कहती हैं, “मैं हर साल यहां मन्नत मांगने आती हूं. मां काली की कृपा से मेरी हर इच्छा पूरी हुई.” पुजारी मोनू पांडे बताते हैं, “भक्तों की आस्था और अनुशासन ही मंदिर की शक्ति है.” वहीं, राकेश पासवान, एक स्थानीय कार्यकर्ता कहते हैं, “यह मंदिर हमारी परंपरा और संस्कृति का अनमोल हिस्सा है.”
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यह मंदिर न केवल धार्मिक पूजा का केंद्र है, बल्कि श्रद्धा, अनुशासन और सामाजिक आस्था का प्रतीक भी है. यहां भक्तों की भीड़, परंपरा और चमत्कारिक प्रसाद इसे बिहार के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में शामिल करते हैं.
वीरेंद्र कुमार, नालंदा.