बक्सर सदर अस्पताल से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो स्वास्थ्य व्यवस्था और मातृ-देखभाल के सरकारी दावों पर सीधे सवाल उठाती है. अस्पताल में प्रसव के बाद महिलाओं और उनके महिला परिजनों को रात में ठहरने के लिए किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं मिलती, जिसके कारण उन्हें कड़कड़ाती ठंड में अस्पताल परिसर के भीतर फुटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर होना पड़ता है. प्रसव के दर्द और कमजोरी झेल चुकी महिलाओं के लिए यह स्थिति बेहद पीड़ादायक और चिंताजनक है.
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भुक्तभोगी महिलाओं और परिजनों के मुताबिक, बच्चे के जन्म के बाद नवजात को अस्पताल के वार्ड में रख लिया जाता है, जबकि मां और उसके साथ आई महिला रिश्तेदारों को रात होते ही वार्ड से बाहर भेज दिया जाता है. रात में खुली जगह पर बैठना और सोना मजबूरी बन जाती है. न बिस्तर की व्यवस्था होती है, न शेड की, न गर्म कपड़े या कंबल की कोई सुविधा. महिलाएं कहती हैं कि ठंड में फुटपाथ पर बैठे हुए दहशत का भी माहौल रहता है, क्योंकि रात में आसपास सुरक्षा भी नहीं दिखती.
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सरकार प्रसूति कराने वाली महिलाओं को निशुल्क प्रसव, दवाइयां, भोजन और परिवहन जैसी कई सुविधाएं देने का दावा करती है. लेकिन इन तस्वीरों से साफ है कि मातृत्व-सुरक्षा की योजना ज़मीन पर लागू होने में बुरी तरह विफल है. कई महिलाएं कहती हैं कि सरकार के विज्ञापन और अस्पताल के पोस्टर में मातृ-देखभाल की बहुत बातें लिखी जाती हैं, लेकिन यहां असल ज़िंदगी में मां को बच्चे से अलग कर फुटपाथ पर रात गुजारने के लिए छोड़ दिया जाता है.
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अस्पताल प्रशासन इस व्यवस्था पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि मरीजों के परिजन सवाल उठा रहे हैं कि आखिर प्रसव के बाद मां की सुरक्षा और आराम की जिम्मेदारी किसकी है. अस्पताल में जगह की कमी, लापरवाही, और प्रबंधन के बीच महिला मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है. ऐसे हालात में जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है.
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बक्सर सदर अस्पताल में महिलाओं के लिए रात में सुरक्षित और गर्म रहने की एक भी स्थायी व्यवस्था नहीं है. सवाल यही है — जब मातृ-सुरक्षा के नाम पर सरकार करोड़ों खर्च का दावा करती है, तो प्रसव के बाद मां को फुटपाथ पर क्यों सोना पड़ता है?
वक्त की जरूरत है कि व्यवस्था सुधरे, नहीं तो घोषणाएं कितनी भी हों — जमीनी सच्चाई इन्हीं तस्वीरों से सामने आती रहेगी.

























