छठ पर्व की आस्था और मतदान का जोश अब धीरे-धीरे थम चुका है. सहरसा स्टेशन पर फिर वही पुराना मंजर लौट आया है — सिर पर झोला, हाथ में बच्चों के छोटे-छोटे बैग और आंखों में घर छोड़ने की कसक लिए हजारों मजदूर अपने गांव से विदा हो रहे हैं.
Bihar Election : चुनाव नतीजे से पहले पटना में गरजा ‘टाइगर अभी जिंदा है’ का पोस्टर!
त्योहार और चुनाव की हलचल बीतते ही कोसी इलाके से मजदूरों का पलायन एक बार फिर शुरू हो गया है. दिल्ली, अमृतसर, लुधियाना और सूरत जैसी मंज़िलों की ओर बढ़ती ट्रेनें इनकी मजबूरी का प्रतीक बन चुकी हैं.
Bihar Election : भाजपा ऑफिस के बाहर लगे पोस्टर में ‘जंगलराज’ पर हमला, लालू-तेजस्वी पर तंज!
सहरसा स्टेशन पर भावनाओं का मेला लगा था. कोई अपने बूढ़े मां-बाप को गले लगाकर विदा ले रहा था, तो कोई पत्नी और बच्चों के आंसू पोंछ रहा था. मजदूरों का कहना है कि वे हर साल त्योहारों पर लौटते हैं, लेकिन रोजगार की कमी उन्हें दोबारा परदेस जाने को मजबूर कर देती है.
प्रवासी मजदूर सोनू कुमार कहते हैं, “हमने इस बार रोजगार और विकास के नाम पर वोट किया है. उम्मीद है कि सरकार अब बिहार में ही काम का माहौल बनाएगी.”
बादल कुमार का कहना है, “त्योहार और चुनाव खत्म, अब फिर वही मजबूरी — घर छोड़कर बाहर जाना पड़ रहा है.”
मोहम्मद जाकिर खान कहते हैं, “हर साल यही हाल है, बाहर जाकर कमाना पड़ता है. चाहत है कि अपने ही राज्य में काम मिले ताकि अपने परिवार के साथ रह सकें.”
वहीं मालिक मुखिया ने साफ कहा, “सरकार अगर रोजगार की व्यवस्था करे, तो पलायन रुक सकता है.”
Bihar : प्यार से कोर्ट तक पहुंचा रिश्ता – भोजपुरी एक्टर पर रेप का केस, पुलिस जांच में जुटी!
छठ की रौनक मिटते ही सहरसा स्टेशन पर ट्रेनों की सीटी और मजदूरों की आंखों की नमी एक साथ सुनाई दे रही है. यह दृश्य सिर्फ यात्रा का नहीं, बल्कि उस उम्मीद और बेबसी का प्रतीक है, जो हर साल बिहार से दूर तक जाती है — रोजगार की तलाश में, एक बेहतर कल की उम्मीद में.
विकास कुमार, सहरसा.

























