बिहार के छह जिलों—भोजपुर, समस्तीपुर, मुंगेर, भागलपुर, खगड़िया और नालंदा—में स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में यूरेनियम मिलने की रिपोर्ट ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों और समाज में चिंता बढ़ा दी है. महावीर कैंसर संस्थान, पटना और AIIMS, दिल्ली की स्टडी में माताओं के दूध में 0–5.25 माइक्रोग्राम/लीटर यूरेनियम पाया गया. यह WHO के मानक 30 माइक्रोग्राम/लीटर से कम है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसका मौजूद होना ही गंभीर चिंता का संकेत है.
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भोजपुर में पहले से भू-जल में आर्सेनिक पाया जाता रहा है. यहां की स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि कुछ साल पहले बक्सर क्षेत्र में माताओं के दूध में आर्सेनिक मिलने की घटना दर्ज की गई थी.
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कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण कुमार द्विवेदी बताते हैं कि यूरेनियम मिट्टी, चट्टानों और फॉस्फेटिक उर्वरकों के माध्यम से पानी और भोजन में शामिल होकर मानव शरीर और मां के दूध तक पहुंच सकता है. नवजात शिशु इस तत्व से हानिकारक प्रभाव झेल सकते हैं.
डॉ. द्विवेदी ने सुझाव दिए कि सुरक्षित पेयजल का उपयोग करें, उर्वरकों में भारी धातुओं की जांच हो, रसायन-मुक्त खेती अपनाई जाए और स्थानीय स्तर पर भूजल की नियमित स्टडी हो.
भोजपुर के सिविल सर्जन शिवेंद्र कुमार सिन्हा ने कहा कि यह रिपोर्ट भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी है. हवा, पानी, मिट्टी और मवेशियों के दूध की भी जांच जरूरी है. यह केवल माताओं के दूध तक सीमित नहीं है और व्यापक वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सामाजिक हस्तक्षेप की जरूरत है.
यूरेनियम की मौजूदगी यह संकेत देती है कि प्रदूषण बढ़ रहा है. यदि अब कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध जल, शुद्ध हवा और मां के दूध जैसी मूलभूत जीवन आवश्यकताओं से भी वंचित होना पड़ सकता है. भोजपुर और आसपास के गंगा तटवर्ती क्षेत्रों में सतर्कता और नीतियों की समीक्षा अनिवार्य है.



























