Bihar Election 2025 उत्तर बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरण, पुराने गढ़ और राजनीतिक विरासतों से प्रभावित रही है. कोसी, मिथिलांचल, तिरहुत और सीमांचल जैसे क्षेत्रों में बड़े नेताओं की छवि और परिवार की पकड़ अब भी वोटरों के फैसलों पर असर डालती है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में नई राजनीतिक ताकतों का उदय और युवा नेतृत्व के दावों ने इस विरासत को चुनौती भी दी है.
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उत्तर बिहार: कौन-कहां प्रभावी?
दरभंगा-मधुबनी-मधेपुरा (मिथिलांचल)
प्रमुख चेहरे: रंजीत रंजन (कांग्रेस), प्रो. गंगा प्रसाद (पूर्व), संजय झा (JDU)
दलगत स्थिति: JDU और RJD की मजबूत पकड़ रही है, लेकिन BJP भी दरभंगा शहरी सीट से लगातार मजबूती में.
रुझान: मिथिला क्षेत्र में मैथिली संस्कृति और उच्च शिक्षा का प्रभाव है. शिक्षित वोटर वर्ग विचारधारा आधारित मतदान करता है.
पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया (सीमांचल)
प्रमुख चेहरे: मो. अशरफ फातमी, सैयद शाहनवाज़ हुसैन, कौसर परवीन (JDU MLC), तेजस्वी के करीबी अब्दुल बारी सिद्दकी
दलगत स्थिति: मुस्लिम-बहुल क्षेत्र होने के कारण RJD और कांग्रेस को फायदा. AIMIM ने किशनगंज में अपनी मौजूदगी दिखाई है.
रुझान: सीमांचल में धर्म और विकास दोनों मुद्दे वोटिंग को प्रभावित करते हैं. बाढ़ व पलायन भी बड़ी राजनीतिक चिंता है.
सुपौल-सहरसा-खगड़िया (कोसी क्षेत्र)
प्रमुख चेहरे: दिलेश्वर कामैत (JDU), पप्पू यादव , रंजीत रंजन, नीतीश कुमार की कोसी में पकड़
दलगत स्थिति: RJD-जेडीयू की मुख्य लड़ाई रही है. पप्पू यादव क्षेत्रीय जनाधार बनाए हुए हैं.
रुझान: कोसी क्षेत्र में यादव, मुस्लिम और महादलित वोट का समीकरण अहम है.
मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और शिवहर के बड़े नेता: एक तथ्यात्मक सूची
उत्तर बिहार के तिरहुत प्रमंडल में आने वाले ये तीन जिले — मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और शिवहर — राजनीतिक रूप से बेहद सक्रिय और सामरिक दृष्टि से भी अहम हैं यहां से कई प्रभावशाली नेता निकल चुके हैं, जिनकी पकड़ स्थानीय स्तर पर मजबूत रही है और कुछ राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय हैं
मुजफ्फरपुर:
राज भूषण चौधरी, वीणा देवी, दिनेश प्रसाद सिंह
अजय निषाद (BJP)
- वर्तमान पद: पूर्व सांसद (2014 से लगातार)
- राजनीतिक पृष्ठभूमि: पिता जय नारायण निषाद भी कई बार सांसद रहे, मंत्री भी बने थे
- छवि: निषाद समुदाय के प्रभावशाली नेता, मोदी लहर का लाभ मिला
विजय कुमार चौधरी (JDU)
मुजफ्फरपुर जिले के सरैया से ताल्लुक, नीतीश कुमार के करीबी
पूर्व शिक्षा मंत्री व वर्तमान में विधान परिषद सदस्य
राजा चौधरी (राजद युवा चेहरा)
स्थानीय राजनीति में उभरते चेहरे, सोशल मीडिया पर सक्रिय
सीतामढ़ी:
सुनील कुमार पिंटू (BJP)
वर्तमान पद: लोकसभा सांसद (सीतामढ़ी)
पहले JDU में थे, फिर BJP में आए
पहचान: सौम्य छवि, मध्यमवर्गीय अपील
दिल्ली से जुड़ी हुई छवि: अर्जुन राय (पूर्व सांसद, RJD)
पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे
रंजीत राम (JDU, दलित चेहरा)
स्थानीय विधानसभा स्तर पर सक्रिय, EBC वोटरों में पकड़
शिवहर:
रणधीर सिंह (BJP)
वर्तमान पद: शिवहर विधानसभा से विधायक
पूर्व में कृषि मंत्री भी रहे हैं
शिवहर क्षेत्र में ठाकुर और सवर्ण वोट बैंक में पकड़
सैयद फैसल अली (RJD युवा चेहरा)
उभरते हुए नेता, युवा और मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस
रेशमा परवीन (कांग्रेस महिला नेत्री)
महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर सक्रिय, शिवहर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं
तिरहुत प्रमंडल के इन जिलों में राजनीतिक नेतृत्व जातीय संतुलन और विकास के वादों पर टिका है. जहां BJP ने शहरी और सवर्ण वोटरों में पकड़ बनाई है, वहीं RJD और JDU ने ग्रामीण और पिछड़े तबके में अपनी जड़ें मजबूत रखी हैं.
राजनीतिक विरासत बनाम नया नेतृत्व
JDU: नीतीश कुमार की पार्टी ने वर्षों तक उत्तर बिहार में सुशासन और EBC समर्थन के बल पर पकड़ बनाई.
RJD: लालू यादव की सामाजिक न्याय की राजनीति अब तेजस्वी के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है. युवा वोटर्स पर फोकस.
BJP: मोदी फैक्टर और हिंदुत्व एजेंडा के साथ शहरी, सवर्ण और युवा वोटरों पर फोकस.
कांग्रेस: प्रभाव सीमित, लेकिन सीमांचल में मुस्लिम-यादव गठजोड़ से उम्मीदें.
अन्य दल: पप्पू यादव जैसे नेताओं की क्षेत्रीय पकड़, AIMIM की सीमांचल में टोह.
जातीय समीकरण: अब भी निर्णायक
| जाति समूह | प्रभावी क्षेत्र | प्रमुख पार्टियां |
| यादव | कोसी, मिथिलांचल | RJD, JAP |
| मुसलमान | सीमांचल | RJD, कांग्रेस, AIMIM |
| सवर्ण | तिरहुत, दरभंगा | BJP |
| कुर्मी/कोयरी | दरभंगा, मधुबनी | JDU |
| महादलित | कोसी, सहरसा | JDU, RJD |
उत्तर बिहार में राजनीतिक विरासत अब भी ज़िंदा है, लेकिन बदलते युवा जनमत और विकास की मांग ने नेताओं को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर किया है. जातीय समीकरण अब भी निर्णायक हैं, लेकिन पहली बार वोट देने वाले युवा मतदाता “विकास बनाम विरासत” की नई बहस लेकर सामने आ रहे हैं.
“उत्तर बिहार में अब सिर्फ जातीय समीकरण नहीं, बल्कि सड़कों की हालत, शिक्षा, मेडिकल कॉलेज और बाढ़ राहत जैसे मुद्दे भी चुनावी बहस का हिस्सा बन चुके हैं.” – डॉ. प्रभाकर सिंह, राजनीतिक विश्लेषक, दरभंगा विश्वविद्यालय
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