(Teenage Relationship) : जब लाइक्स-फॉलोअर्स बन जाएं रिश्तों का पैमाना
इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आज की पीढ़ी रिश्ते बना भी रही है और तोड़ भी रही है . डिजिटल कनेक्शन अब रियल फीलिंग्स का रिप्लेसमेंट बनता जा रहा है . लेकिन इस ट्रेंड के साथ कई मानसिक और भावनात्मक समस्याएं भी तेजी से सामने आ रही हैं. खासकर बॉडी शेमिंग , फीलिंग ऑफ इनसिक्योरिटी और सेल्फ-वैल्यू पर असर .
Teenage Relationship: पैरेंट्स Sex और Consent पर बात करें
(Teenage Relationship) : रिश्तों का नया फॉर्मूला: DMs, स्टोरीज़ और स्ट्रीक्स
डिजिटल बिहेवियर एक्सपर्ट डॉ. रुचिका वर्मा कहती हैं, “अब फीलिंग्स के इज़हार में गिफ्ट या कविताएं नहीं, बल्कि स्टोरी व्यूज, लाइक्स और कमेंट्स का स्कोर देखा जाता है . रिलेशनशिप का स्टेटस ‘Seen’ और ‘Unseen’ से तय होता है .”
Teenagers खासतौर पर इस ट्रेंड का हिस्सा हैं, जहां रिश्ते चंद चैट्स और फिल्टर्ड फोटोज़ पर बनते-बिगड़ते हैं .
बॉडी शेमिंग और तुलना का बढ़ता जाल (Teenage Relationship) :
स्कूल टीचर और काउंसलर पूजा अरोड़ा बताती हैं, “बच्चे अब अपनी पहचान सोशल मीडिया की ‘परफेक्ट बॉडी’ वाली तस्वीरों से जोड़ने लगे हैं . जो रियल न हो, उसे पाने की दौड़ में उनका आत्मविश्वास टूटता जा रहा है .”
जब लड़के-लड़कियां इंस्टा पर ‘फिट’ और ‘ग्लैमरस’ इमेज देखते हैं, तो खुद को कमतर समझने लगते हैं .
इससे जुड़ता है बॉडी शेमिंग , जहाँ दोस्त भी मज़ाक बनाते हैं, और ये मज़ाक गहरे मानसिक असर छोड़ता है .
इनसिक्योरिटी: जब डिजिटल रिश्ते बनते हैं डर की वजह
मनोवैज्ञानिक डॉ. अमित तिवारी कहते हैं, “जब कोई पार्टनर किसी और की स्टोरी पर हार्ट भेजे या किसी की फोटो पर कमेंट करे, तो दूसरे पार्टनर में जलन, असुरक्षा और शक पैदा होता है . यह रिलेशनशिप को नुकसान पहुंचाता है .”
सोशल मीडिया पर किसको फॉलो किया, किसको लाइक किया, कौन DM में एक्टिव है — ये सवाल रोज़ रिश्तों में टकराव की वजह बनते हैं .

क्या करें अभिभावक और शिक्षक?
- बच्चों के साथ खुलकर संवाद करें — कि सोशल मीडिया की लाइफ फेक होती है, और रियल लाइफ की वैल्यू ज्यादा है .
- स्कूलों में डिजिटल इमोशनल हेल्थ को लेकर वर्कशॉप्स करवाई जाएं .
- बच्चों को डिजिटल डिटॉक्स के लिए मोटिवेट करें — हफ्ते में एक दिन बिना सोशल मीडिया बिताना .
युवाओं के लिए सलाह
- सोशल मीडिया पर तुलना से बचें . हर इंसान की जर्नी अलग होती है .
- रिलेशनशिप में ट्रस्ट और कंफर्ट रियल इंटरैक्शन से आते हैं, न कि ऑनलाइन स्टेटस से .
- बॉडी पॉज़िटिविटी को अपनाएं और फेक फिल्टर्स से खुद की असलियत को न नापें .
सोशल मीडिया रिश्ते बनाने का माध्यम बन सकता है, लेकिन अगर इसमें ‘फिल्टर’ ज्यादा हो जाएं, तो असल भावनाएं पीछे छूट जाती हैं . ज़रूरी है कि हम खुद को और दूसरों को इस डिजिटल दुनिया में संतुलित रखने की समझ दें, ताकि रिश्ते टिकें, और आत्मविश्वास भी .
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