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Great: “वो चला गया… लेकिन 4 दिलों में ज़िंदा है”

जब कोई अपनों को खोता है, तो पूरी दुनिया थम-सी जाती है . लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने दुख को किसी और की उम्मीद में बदल देते हैं . अंगदान करने वाले ऐसे ही एक परिवार की कहानी है यह. जिसने अपने बेटे की मौत के बाद उसके अंगों को दान कर चार लोगों को ज़िंदगी दी .

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‘हमारा बेटा अब औरों के दिलों में धड़कता है’

22 वर्षीय आयुष एक होनहार इंजीनियरिंग छात्र था . हमेशा मुस्कुराने वाला, दोस्तों का चहेता, और अपने माता-पिता की आंखों का तारा . एक सड़क दुर्घटना में जब आयुष को गंभीर चोटें आईं, तो डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया . उस क्षण माता-पिता के लिए जैसे वक्त थम गया .

मां सरिता जी कहती हैं, “मैंने डॉक्टर से सिर्फ एक सवाल पूछा – क्या आयुष किसी और के लिए कुछ कर सकता है?” डॉक्टर ने बताया कि आयुष के दिल, दोनों किडनी और लिवर का उपयोग चार ज़िंदगियों को बचाने में किया जा सकता है .

अंगदान का निर्णय: पीड़ा में उम्मीद की लौ

अंगदान का फैसला आसान नहीं था . पिता, संजय बताते हैं, “हमारे लिए यह सिर्फ अंग नहीं थे, ये आयुष का हिस्सा थे . पर फिर सोचा, अगर आयुष की धड़कन किसी और को ज़िंदा रख सकती है, तो हमें वो मौका ज़रूर देना चाहिए .”

अगले 24 घंटे में आयुष का दिल दिल्ली के एक 11 वर्षीय लड़के को ट्रांसप्लांट किया गया, जो जन्मजात दिल की बीमारी से जूझ रहा था . उसकी मां रोते हुए बोलीं, “अब मेरे बेटे की छाती में एक देवता का दिल धड़क रहा है .”

चार ज़िंदगियां, एक आशीर्वाद

  • दिल गया एक बच्चे को, जो अब फिर से स्कूल जा रहा है
  • लिवर मिला एक 38 वर्षीय महिला को, जिसे लीवर फेलियर था
  • दोनों किडनी गए दो पुरुषों को, जो डायलिसिस पर थे

इनमें से एक पेशे से शिक्षक हैं, जिन्होंने भावुक होकर कहा, “अब मैं हर दिन पढ़ाते हुए उस बेटे को धन्यवाद देता हूं, जिसे मैंने कभी देखा नहीं .”

अंगदान की अहमियत

भारत में हर साल लाखों लोग अंगों की प्रतीक्षा में दम तोड़ देते हैं . जागरूकता की कमी और मिथकों की वजह से लोग अंगदान से कतराते हैं .

डॉक्टर वसुधा अग्रवाल , AIIMS की ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर कहती हैं, “एक ब्रेन डेड व्यक्ति के अंग कम-से-कम 8 लोगों को नई ज़िंदगी दे सकते हैं . अंगदान सिर्फ चिकित्सा नहीं, यह मानवता का सबसे बड़ा उपहार है .”

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सरकारी पहल और पंजीकरण 

भारत सरकार की NOTTO (National Organ and Tissue Transplant Organization) वेबसाइट पर जाकर कोई भी व्यक्ति अंगदान के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर सकता है . कई अस्पताल अब “ग्रीन कॉरिडोर” बनाकर अंग ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया को तेज करते हैं .

आयुष चला गया, लेकिन वह अब भी चार शरीरों में ज़िंदा है – सांसों में, दिल की धड़कनों में और आंसुओं से भरी दुआओं में . ऐसे परिवारों का साहस और संवेदनशीलता ही समाज को एक नई दिशा देते हैं .

अगर आप भी किसी की ज़िंदगी का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो अंगदान के लिए पंजीकरण करवाएं . क्योंकि मरने के बाद भी आप किसी की ज़िंदगी बन सकते हैं .

(सच्ची घटना पर आधारित, नाम और स्थान गोपनीयता हेतु बदले गए हैं .)

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