Cyberbullying: जैसे-जैसे दुनिया इंटरनेट, सोशल मीडिया और तकनीक की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे किशोरों के लिए नए तरह के खतरे भी सामने आ रहे हैं. पहले जहां तंग करना या अफवाह फैलाना आमने-सामने होता था, अब ये सब मोबाइल, कंप्यूटर और सोशल मीडिया के ज़रिए कभी भी, कहीं भी और किसी के भी साथ हो सकता है. इसे ही साइबरबुलिंग (cyberbullying) कहते हैं.
भारत में यह समस्या सबसे गंभीर रूप ले चुकी है—McAfee की एक रिपोर्ट के अनुसार, 85% भारतीय बच्चों ने कभी न कभी साइबरबुलिंग का अनुभव किया है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है. यही नहीं, भारतीय बच्चों ने दूसरों को साइबरबुलिंग करने की बात भी दुनिया के औसत से दोगुनी दर पर कबूल की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साइबरबुलिंग के सबसे आम रूप हैं—झूठी अफवाहें फैलाना (39%) (false rumors) , ग्रुप्स या चैट्स से बाहर करना (35%), और नाम लेकर गाली देना (34%). इसके अलावा, नस्लीय साइबरबुलिंग (racism), ट्रोलिंग, व्यक्तिगत हमले, यौन उत्पीड़न, शारीरिक नुकसान की धमकी और निजी जानकारी (जैसे फोटो या नंबर) सार्वजनिक करना (doxing) भी बहुत आम हैं.
यह समस्या इतनी गंभीर है कि “एक तिहाई से ज़्यादा भारतीय बच्चे साइबर नस्लवाद, यौन उत्पीड़न और शारीरिक नुकसान की धमकी जैसी गंभीर साइबरबुलिंग का सामना कर रहे हैं, और यह सब 10 साल की उम्र से ही शुरू हो जाता है,” जैसा कि McAfee रिपोर्ट में कहा गया है.
सबसे चिंताजनक बात यह है कि 45% भारतीय बच्चे अपने माता-पिता से साइबरबुलिंग की घटनाएं छुपा लेते हैं. कई बार डर, शर्म या यह सोचकर कि ‘कोई मदद नहीं करेगा’, बच्चे किसी को नहीं बताते.
साइबरबुलिंग (cyberbullying)के कारण किशोरों में मानसिक तनाव, अकेलापन, आत्मविश्वास की कमी, पढ़ाई में गिरावट और कई बार गंभीर डिप्रेशन तक हो सकता है. लड़कियां, खासकर 10-16 साल की उम्र में, सबसे ज़्यादा शिकार होती हैं—उन्हें यौन उत्पीड़न और धमकियों का खतरा अन्य देशों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है.
समाधान और कानूनी सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट के वकील अजीत कुमार शाही ने कानूनी जानकारी देते हुए बताया कि अगर आप या आपका कोई दोस्त साइबरबुलिंग का शिकार हो, तो सबसे पहले डरें नहीं और चुप न रहें. भारत में साइबरबुलिंग से बचाव और न्याय के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000):
- धारा 66E: किसी की निजी तस्वीर या वीडियो बिना अनुमति के साझा करना अपराध है, जिसमें 3 साल तक की सजा हो सकती है.
- धारा 67:अश्लील सामग्री का प्रसार करने पर 5 साल तक की जेल या 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.
- धारा 66C: किसी और के पासवर्ड या पहचान का दुरुपयोग करने पर 3 साल तक की जेल या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना.
- धारा 72:गोपनीयता भंग करने पर 2 साल तक की सजा या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना.
- भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 507: गुमनाम धमकी देना अपराध है.
- धारा 509: महिलाओं की गरिमा का अपमान करने पर सजा का प्रावधान है.
- पोक्सो एक्ट, 2012:
- बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन उत्पीड़न पर सख्त सज़ा है.
- डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023:
- आपकी निजी जानकारी की रक्षा के लिए कंपनियों और प्लेटफॉर्म्स पर सख्त नियम लागू हैं.
- भारतीय संविधान:
- अनुच्छेद 21:निजता का अधिकार (Right to Privacy) एक मौलिक अधिकार है.
- अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लेकिन इसमें किसी की गरिमा या निजता भंग करने की छूट नहीं है.
क्या करें अगर आप शिकार हों?
- सबूत संभालें: स्क्रीनशॉट, मैसेज, ईमेल—सब सुरक्षित रखें.
- माता-पिता या भरोसेमंद बड़े से बात करें: डरें नहीं, मदद माँगना सही है.
- ब्लॉक और रिपोर्ट करें:जो परेशान कर रहा है, उसे तुरंत ब्लॉक करें और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोर्ट करें.
- पुलिस या साइबर सेल में शिकायत करें: भारत सरकार की National Cyber Crime Reporting Portal (cybercrime.gov.in) पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
- दोस्तों से शेयर करें:अकेले न रहें, अपने दोस्तों से बात करें.
याद रखें, इंटरनेट की दुनिया जितनी रंगीन और मज़ेदार है, उतनी ही सतर्कता भी मांगती है. साइबरबुलिंग को नज़रअंदाज़ न करें—यह अपराध है, और आपके पास इससे लड़ने के लिए कानून और अधिकार दोनों हैं. जागरूक रहें, सुरक्षित रहें.
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