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Dissociative disorder के लक्षण और समाधान डॉक्टर से जानें

Dissociative disorder: हर बच्चा अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया करता है. कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने कुछ दर्दनाक अनुभवों से दूर भागने के लिए अपने विचारों को और अपनी भावनाओं को अलग अलग कर देते हैं. इसे ही मनोवैज्ञानिक भाषा में “डिसोसिएटिव डिसऑर्डर”(Dissociative disorder) कहते हैं. यह एक तरीके की मानसिक स्थिति है जिसमें बच्चा अपनी यादों, पहचान और भावनाओं से अस्थायी रूप से कटाव महसूस करता है.

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क्या होता है डिसोसिएटिव डिसऑर्डर (Dissociative disorder)?

साइकोलॉजिस्ट डॉ रिज़वाना का कहना है कि इसमें बच्चा अक्सर किसी बुरी घटना, या कोई डरावने अनुभव से बचने के लिए अपने मन को उस स्थिति से अलग कर लेता है. इसका मतलब ये नहीं होता की बच्चा झूठ बोल रहा है या कोई बहाना बना रहा है. बच्चा एक तरह से खुदके दिमाग़ की सुरक्षा कर रहा होता है ताकि वो उस दर्द को महसूस ना कर सके.

इसके लक्षण क्या होते हैं ?

डॉ रिज़वाना के अनुसार:

  • Amnesia – बच्चा किसी घटना को एकदम से भूल जाता है, उसको छोटी छोटी बातें भी नहीं याद रहती है.
  • Multiple personality – बहुत से ऐसे गंभीर मामले होते हैं जिनमे बच्चा अलग अलग नाम या पहचान अपना सकता है.
  • ख़यालों में खो जाना – कुछ बच्चों के साथ ऐसा होता है की बाते करते करते अचानक ही चुप हो जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे उनका दिमाग़ कहीं और चला गया हो.
  • भावनात्मक बदलाव – कभी कभी बहुत बच्चे अचानक से बहुत ज़्यादा डर जाते हैं, या गुस्सा करने लगते हैं या अजीब व्यवहार करने लगते हैं.
  • Physical symptoms – कभी कभी पेट दर्द, सर दर्द, हाथ पैर सुन्न पड़ने जैसे शारीरिक लक्षण भी आ जाते हैं.
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यह समस्या बच्चों में किस वजह से होती है?

इसका मुख्य कराण मानसिक आघात होता है जैसे-

  • घरेलू हिंसा या मारपीट
  • यौन शोषण
  • कोई बड़ा हादसा
  • माता पिता के बीच झगड़ा या तलाक
  • किसी प्रियजन की मौत

यह सभी घटनाएं बच्चों के कोमल मन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती हैं इसी कारण वो लोग खुदको बचाने के लिए असली दुनिया से दूर जाने की कोशिश करते हैं. यह सभी ऐसे कारण है जो सिर्फ़ बच्चों पर ही नहीं बल्कि बड़ों पर भी बुरा असर डालते है.

इसका कुछ समाधान भी हैं –

  • सबसे जरूरी यह है कि बच्चा खुदको सुरक्षित महसूस करे. माता पिता को यह समझना चाहिए की वह बच्चों को दोषी ना समझे बल्कि उन्हें प्यार दें और उनको सुरक्षित माहौल में रखें ताकि उन्हें असली दुनिया से भागने की जरूरत ना पड़े.
  • बच्चे की थेरेपी करवायें ताकि वह अपनी बात खुलकर बता पाये.और तो और वो नकारात्मक सोच को बदल पाये. अगर बच्चे को ट्रामा गहरा है तो विशेष तरह तकनीक अपनायी जाती है उसको ठीक करने के लिए.
  • कई बार ऐसा होता है जहां माता पिता ही बच्चे की स्थिति को नहीं समझ लाते हैं. इसीलिए उन्हें भी काउंसलिंग की जरूरत होती है जहां उन्हें बताया जाता है कि कैसे बच्चे के साथ पेश आयें, उसे डाँटें नहीं.
  • बच्चों को स्कूल के भी सपोर्ट की बहुत जरूरत होती है तो टीचर्स को भी आना चाहिए कि बच्चे को कैसे संभाले.

डिसोसिएटिव डिसऑर्डर(Dissociative disorder) एक मानसिक प्रतिक्रिया है ना कि कोई कमजोरी. अगर माता पिता इसे सही समय पर समझ जायें और मदद लें तो बच्चे जल्दी ठीक हो सकते हैं. और याद रखें की बच्चे को प्यार, सुरक्षा और विश्वास देना ही सबसे बड़ा इलाज है. अगर कोई बच्चा खामोश हो गया है तो उसे समझाइये और उसे डर महसूस ना होने दीजिए.

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