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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा क्यों मानी जाती है सबसे खास? जानें दूसरे दिन का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी

शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन देवी मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है, इन्हें तप की देवी भी कहा जाता है. मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत ही शांत, गंभीर और सौम्य है. इनके एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है. इनकी पूजा करने से साधक को तप, संयम, ज्ञान और असीम शक्ति की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा को नवरात्रि के नौ दिनों में सबसे खास और महत्वपूर्ण माना जाता है.

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और महत्व
मां ब्रह्मचारिणी का नाम ‘ब्रह्म’ + ‘चारिणी’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है – ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करने वाली, इनकी साधना से मनुष्य के भीतर त्याग, तपस्या और धैर्य का भाव जागृत होता है. माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक को जीवन के सभी कार्यों में सफलता मिलती है और उसका मन ईश्वर की भक्ति में स्थिर रहता है.

पूजा विधि (Puja Vidhi)
सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और घर के मंदिर को गंगाजल से शुद्ध करें, मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र पर गंगाजल छिड़कें, उन्हें सफेद पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन और धूप-दीप अर्पित करें, जौ, शक्कर और चंदन का भोग चढ़ाना सबसे शुभ माना जाता है. अंत में मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें.

मंत्र
“ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” इस मंत्र का 108 बार जाप करने से मनुष्य को मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है.

भोग
मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर और गुड़ का भोग प्रिय है, इसे चढ़ाने से साधक की आयु लंबी होती है और रोग-शोक से मुक्ति मिलती है.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का फल
जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है, साधक को कठिन तप और संयम करने की शक्ति मिलती है. मन से डर, अहंकार और नकारात्मकता दूर होती है, परिवार में आपसी प्रेम और सौहार्द बना रहता है.

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