हिंदू धर्म में हर परंपरा के पीछे कोई न कोई धार्मिक और आध्यात्मिक कारण जरूर छिपा होता है, ऐसी ही एक मान्यता बांस से जुड़ी है. आपने अक्सर देखा होगा कि बांस को कभी भी जलाया नहीं जाता, बल्कि जब किसी की मृत्यु होती है, तब भी बांस की चिता नहीं बनाई जाती. केवल उसे मृतदेह को सहारा देने के लिए प्रयोग किया जाता है. आखिर ऐसा क्यों है? आइए जानते हैं बांस जलाने को लेकर धर्मशास्त्रों और परंपराओं में क्या कहा गया है.
धार्मिक मान्यता — बांस में बसती है पवित्र ऊर्जा
हिंदू धर्म में बांस को शुभ और पवित्र माना गया है, इसे “वृक्षों का ब्राह्मण” कहा गया है क्योंकि यह सदैव हरा-भरा रहता है और जीवन, वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. यही कारण है कि विवाह, गृह प्रवेश, पूजा या नए कार्य की शुरुआत में बांस या उसके उत्पादों का उपयोग किया जाता है. लेकिन शास्त्रों में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बांस को जलाना अशुभ माना गया है, क्योंकि ऐसा करने से देवताओं और पितरों का अपमान होता है.
बांस जलाने से निकलती है नकारात्मक ऊर्जा
धार्मिक मान्यता के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी बताए गए हैं, माना जाता है कि बांस जलाने से विषैली गैसें निकलती हैं, जो वातावरण को दूषित करती हैं और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं. प्राचीन समय में जब पर्यावरण को शुद्ध रखने पर अधिक ध्यान दिया जाता था, तब से ही बांस जलाने की मनाही चली आ रही है.
मृत्यु संस्कार में क्यों नहीं जलाते बांस
हिंदू संस्कारों में मृत्यु के समय बांस से शव को चिता स्थल तक ले जाया जाता है, लेकिन चिता में इसे जलाया नहीं जाता. इसका कारण यह है कि बांस को ‘जीवंत लकड़ी’ माना गया है. यानी इसमें अभी भी जीवन और ऊर्जा का संचार माना जाता है. इसीलिए इसे जलाने से पवित्रता भंग होती है और इसे अपशकुन माना गया है.
शुभता का प्रतीक है बांस
हिंदू संस्कृति में बांस को दीर्घायु, समृद्धि और वंशवृद्धि का प्रतीक माना गया है. ऐसा कहा जाता है कि जहां बांस होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. इसलिए बांस को नष्ट करना या जलाना देवी लक्ष्मी का अपमान माना जाता है.
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