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पूर्वजों को तर्पण, लेकिन अपनों को वृद्धाश्रम… समाज की बदलती सोच की सच्चाई

वृद्धाश्रम

मुरादाबाद: पितृ पक्ष का समय ऐसा माना जाता है जब लोग अपने पूर्वजों को याद कर तर्पण करते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिन बुजुर्गों के लिए हम श्राद्ध करते हैं, क्या वे हमारे साथ हैं या फिर वृद्धाश्रम में अकेलेपन की जिंदगी बिता रहे हैं?

वृद्धाश्रम की सच्चाई
आज के दौर में वृद्धाश्रम समाज की एक कड़वी हकीकत बन गए हैं. मुरादाबाद के मिलन विहार स्थित वृद्धाश्रम में करीब 130 से ज्यादा बुजुर्ग रह रहे हैं. उनकी आंखों में अपनों से बिछड़ने का दुख साफ झलकता है.

क्यों जाना पड़ता है वृद्धाश्रम?
परिवार की जिम्मेदारी से बचना, आर्थिक तंगी और खर्च का बोझ, बदलती पारिवारिक संरचना और सोच

समाधान क्या है?
परिवार को अपने बुजुर्गों की देखभाल करनी होगी, सरकार को पेंशन और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ानी होंगी, समाज को भी परिवारों को जागरूक करना होगा कि बुजुर्गों को साथ रखें.

निष्कर्ष
पितृ पक्ष में तर्पण करने से पहले हमें अपने जीवित बुजुर्गों का ख्याल रखना चाहिए. वृद्धाश्रम कोई स्थायी समाधान नहीं, बल्कि मजबूरी है. असली सम्मान तभी है जब हम अपने माता-पिता और दादा-दादी को अपने साथ रखें.
मुरादाबाद का यह वृद्धाश्रम हमें आइना दिखाता है कि श्राद्ध सिर्फ अनुष्ठान नहीं, बल्कि रिश्तों की जिम्मेदारी निभाने का एहसास भी है.

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