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मथुरा में भाई दूज का पर्व, यमुना किनारे दिखा भव्य नजारा!

मथुरा: भाई दूज के पावन पर्व पर मंगलवार को मथुरा के विश्राम घाट पर श्रद्धा और भक्ति का अनूठा संगम देखने को मिला.
सुबह से ही लगभग 1.25 लाख श्रद्धालु यमुना नदी में पवित्र स्नान के लिए पहुंचे. यहां स्थित यमराज और यमुना मंदिर में पूजा-अर्चना का सिलसिला दिनभर जारी है.

परिवारों के साथ पहुंचे श्रद्धालु पूरी भक्ति और उत्साह से यम फांस (अकाल मृत्यु) से मुक्ति के लिए यमुना में डुबकी लगा रहे हैं.
भाई-बहनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर यमुना में स्नान किया और फिर तिलक अनुष्ठान पूरा किया. स्नान के बाद बहनों ने अपने भाइयों को आसन पर बिठाकर तिलक किया और दीप जलाकर यमराज-यमुना मंदिर में पूजा की. विश्राम घाट पर तैनात पंडे पारंपरिक विधि-विधान से पूजा करा रहे हैं.

भाई दूज और यम द्वितीया का धार्मिक महत्व

दिवाली के दो दिन बाद आने वाला यह पर्व कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करता है और तिलक करवाता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और वह लंबी आयु प्राप्त करता है. पूरे उत्तर प्रदेश में यह त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है.

यमराज और यमुना की कथा: भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक

पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज और यमुना सूर्य देव और संज्ञा की संतानें हैं. यमुना अपने भाई यमराज से अत्यधिक स्नेह रखती थीं, लेकिन यमराज अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए उनसे मिलने नहीं जा पाते थे. एक दिन यमुना ने उन्हें वचन दिलाया कि वे अवश्य उनके घर भोजन करने आएंगे.

जब यमराज यमुना के घर पहुंचे, वह दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया का था. यमुना ने अपने भाई का सत्कार किया और भोजन कराया. यमराज प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा, तो यमुना ने आशीर्वाद मांगा कि — “हर वर्ष इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर भोजन करेगा, उसे लंबी आयु, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होगी.” तब से ही भाई दूज पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है.

भाई दूज पर यमुना स्नान की परंपरा

भाई दूज के दिन मथुरा में यमुना स्नान का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन भाई-बहन यदि साथ में यमुना में स्नान करते हैं तो सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. स्नान के बाद बहन अपने भाई को तिलक लगाती है और प्रार्थना करती है कि. “मेरे भाई को मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य और अश्वत्थामा जैसे चिरंजीवी होने का वर मिले” पूरे ब्रज क्षेत्र में यह पर्व पारिवारिक स्नेह, आस्था और संस्कृति का उत्सव बन गया है.

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रिपोर्ट-हेमंत शर्मा