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Politics : राहुल गांधी की ‘वोट अधिकार यात्रा’ से कन्हैया “OUT”

पटना : बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और सियासी दलों ने चुनावी मैदान में अपनी-अपनी रणनीतियों को धार देना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में कांग्रेस नेता और विपक्ष के सबसे चर्चित चेहरों में से एक राहुल गांधी 17 अगस्त से 31 अगस्त तक राज्य में ‘वोट अधिकार यात्रा’ निकालने जा रहे हैं. इस यात्रा को महागठबंधन के लिए चुनावी माहौल तैयार करने का अहम कदम माना जा रहा है.

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यात्रा के दौरान राहुल गांधी राज्य के कई जिलों का दौरा करेंगे, कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे और जनता के बीच महंगाई, बेरोजगारी, किसान मुद्दे और केंद्र सरकार की नीतियों पर अपनी बात रखेंगे. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह यात्रा महागठबंधन की चुनावी रणनीति का शुरुआती और बेहद अहम चरण है.

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इस यात्रा में कांग्रेस के फायरब्रांड नेता और राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले कन्हैया कुमार की गैरमौजूदगी ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज कर दी है. कन्हैया, जो 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपने आक्रामक भाषणों और जनसंपर्क के लिए सुर्खियों में रहे थे, इस बार बिहार से दूर रहेंगे.

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हालांकि, यह गैरमौजूदगी उनकी भूमिका के महत्व को कम नहीं करती. कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को SIR (Special Investigation Report) मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व सौंपा है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी की यात्रा जहां बिहार पर केंद्रित है, वहीं कन्हैया का मिशन पूरे देश में कांग्रेस की राजनीतिक पैठ बढ़ाने पर केंद्रित है.

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कन्हैया कुमार के नेतृत्व में यह आंदोलन तीन चरणों में चलेगा —

14 अगस्त: सभी जिला मुख्यालयों में मशाल जुलूस के साथ आंदोलन की शुरुआत.

22 अगस्त से 7 सितंबर: सभी राज्य राजधानियों में ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ रैलियां.

15 सितंबर से 15 अक्टूबर: पूरे देश में हस्ताक्षर अभियान, जिसका लक्ष्य करोड़ों लोगों का समर्थन जुटाना है.

इन कार्यक्रमों में कन्हैया अलग-अलग राज्यों में जाकर कार्यकर्ताओं को संगठित करेंगे, विपक्षी ताकतों को एकजुट करेंगे और चुनावी मुद्दों को जनता तक पहुंचाएंगे.

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विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस एक साथ दो मोर्चों पर काम कर रही है. बिहार में राहुल गांधी का फोकस राज्य की राजनीतिक जमीन को मजबूत करना है, जबकि कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी माहौल तैयार कर रहे हैं. यह रणनीति कांग्रेस को चुनावी नैरेटिव में बढ़त दिलाने की कोशिश है.

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कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी की ‘वोट अधिकार यात्रा’ और कन्हैया कुमार का देशव्यापी आंदोलन एक-दूसरे के पूरक हैं. राहुल जहां सीधे बिहार के मतदाताओं से संवाद करेंगे, वहीं कन्हैया का मिशन राष्ट्रीय मुद्दों पर दबाव बनाना है.

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बिहार में महागठबंधन के लिए यह यात्रा चुनावी ऊर्जा का संचार कर सकती है, खासकर ग्रामीण इलाकों और युवा मतदाताओं में. वहीं, कन्हैया का देशव्यापी आंदोलन कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनावों और अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मजबूत पोजिशनिंग दे सकता है.

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स्पष्ट है कि कांग्रेस ने चुनावी समर में उतरने से पहले अपने दोनों स्टार नेताओं की ताकत को अलग-अलग मोर्चों पर तैनात कर दिया है — एक स्थानीय, एक राष्ट्रीय. अब देखना यह है कि यह रणनीति जनता को कितना प्रभावित करती है और आने वाले चुनावी नतीजों में कितना असर दिखाती है.

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