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Lakhisarai : गरीबी से उठकर लखीसराय की राजनीति का सितारा बना अरविंद पासवान!

लखीसराय नगर परिषद के सभापति अरविंद पासवान का जीवन संघर्ष, मेहनत और संकल्प की अद्भुत कहानी है। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत बहुत साधारण पृष्ठभूमि से की, लेकिन आज नगर की राजनीति में एक मजबूत पहचान बना चुके हैं।

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शुरुआत छोटे कारोबार से

1981 से 1991 तक अरविंद पासवान रेलवे स्टेशन परिसर में चाय, लिट्टी और भोजनालय चलाकर अपनी आजीविका कमाते रहे। साथ ही, पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) की दुकान का संचालन भी किया। इसी दौरान उन्होंने नगर परिषद लखीसराय में वार्ड पार्षद के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। छोटे व्यापारी से लेकर वार्ड प्रतिनिधि बनने तक का यह सफर आसान नहीं था, लेकिन उनकी लगन और जनता से जुड़ाव ने उन्हें आगे बढ़ाया।

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राजनीति में कदम

1994 में उन्होंने समता पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की। पार्टी बदलते राजनीतिक माहौल में वे जदयू में शामिल हो गए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के करीबी बने। इसी राजनीतिक मार्गदर्शन ने उन्हें नगर की राजनीति में मजबूत स्थान दिलाया।

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नगर परिषद की सीढ़ियां

1991 से 2002 तक वे पीडीएस की दुकान से जुड़े रहे। 2003 में उन्होंने मुंगेर नगर निकाय क्षेत्र से एमएलसी का चुनाव भी लड़ा। 2007 में वे दोबारा वार्ड पार्षद चुने गए, 2012 में उपसभापति बने और 2017 से लगातार लखीसराय नगर परिषद के सभापति पद पर कार्यरत हैं। यह उनकी जनता के बीच लोकप्रियता और प्रशासनिक दक्षता का प्रमाण है।

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संघर्ष और सफलता की कहानी

अरविंद पासवान का सफर इस बात का प्रमाण है कि सीमित संसाधनों के बावजूद, अगर मेहनत और ईमानदारी हो तो राजनीति में सम्मानजनक स्थान बनाया जा सकता है। उन्होंने कभी भी अपने अतीत को छुपाया नहीं, बल्कि स्टेशन पर चाय-लिट्टी बेचने के दिनों को अपनी ताकत माना।

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अब विधानसभा की ओर

आज अरविंद पासवान का अगला लक्ष्य बिहार विधानसभा में प्रवेश करना है। वे मानते हैं कि विधानसभा तक पहुंचने से वे लखीसराय और आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए बड़े पैमाने पर काम कर पाएंगे। उनका कहना है, “जनता का आशीर्वाद और भरोसा ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है।”

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जनता के बीच छवि

लखीसराय में अरविंद पासवान को एक जमीन से जुड़े नेता के रूप में देखा जाता है। वे हर वर्ग के लोगों के बीच आसानी से घुल-मिल जाते हैं, उनकी समस्याएं सुनते हैं और यथासंभव समाधान करते हैं। यही कारण है कि वे लगातार दो बार नगर परिषद के सभापति चुने गए हैं।

अरविंद पासवान की कहानी एक प्रेरणा है कि संघर्ष, समर्पण और सच्ची नीयत से राजनीति में ईमानदारी के साथ काम किया जा सकता है। रेलवे स्टेशन की दुकान से लेकर नगर परिषद सभापति और अब विधानसभा की ओर बढ़ते उनके कदम इस बात का प्रमाण हैं कि सपने सच हो सकते हैं—बस हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

कृष्णदेव प्रसाद यादव I लखीसराय

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