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Bihar : गांव से ग्लैमर तक, कुणाल सिंह की भोजपुरी यात्रा!

भोजपुरी सिनेमा की जब भी बात होती है, तो उसमें एक नाम पूरे सम्मान और गर्व के साथ लिया जाता है – कुणाल सिंह. बिहार के मनेर से निकलकर उन्होंने न केवल भोजपुरी फिल्मों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि एक ऐसी पहचान दी जिसमें माटी की खुशबू और आत्मीयता बसती है. सहारा समय डिजिटल से हुई खास बातचीत में कुणाल सिंह ने अपने जीवन, करियर और भोजपुरी सिनेमा की जड़ों को लेकर कई अहम बातें साझा कीं.

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हीरो नंबर 1 की पहचान

कुणाल सिंह ने ‘गंगा किनारे मोरा गाँव’, ‘बैरी कंगना’ जैसी फिल्मों में अपने सहज अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया. यही वजह रही कि उन्हें ‘हीरो नंबर 1’ की उपाधि से नवाज़ा गया. उनकी फिल्मों में न कोई बनावट दिखती थी, न कोई दिखावा-बस एक सच्चे कलाकार की आत्मा नजर आती थी.

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गांव के बेटे की छवि

मूल रूप से बिहार के मनेर के रहने वाले कुणाल सिंह खुद को आज भी एक “गांव का बेटा” ही मानते हैं. यही भावना उनकी हर फिल्म में झलकती रही है. वे सच्चे मायने में उस देसीपन को पर्दे पर लेकर आए, जिससे भोजपुरी सिनेमा आम जनता से गहराई से जुड़ा.

भोजपुरी के अमिताभ बच्चन

80 के दशक में जब सिनेमा तकनीकी बदलावों के दौर से गुजर रहा था, तब कुणाल सिंह की ऊँची कद-काठी, दमदार संवाद अदायगी और मासूमियत से भरी आंखों ने उन्हें भोजपुरी का अमिताभ बच्चन बना दिया. दर्शक उन्हें केवल अभिनेता नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा मानते थे.

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राजनीति में भी आजमाया हाथ

भले ही उन्होंने बिहार से लोकसभा चुनाव लड़ा हो, लेकिन राजनीति की भीड़ में भी उनका दिल हमेशा अभिनय और अपने फैंस के करीब ही रहा. वे आज भी खुद को एक अभिनेता और समाजसेवक ही मानते हैं.

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राष्ट्रपति सम्मान से नवाजे गए

साल 2012 में भोजपुरी फिल्मों में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह सम्मान केवल उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे भोजपुरी समाज के लिए गर्व का विषय था.

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रामायण में राम बनने का ऑफर

बहुत कम लोगों को पता है कि उन्हें रामानंद सागर के ‘रामायण’ सीरियल में भगवान राम की भूमिका निभाने का प्रस्ताव भी मिला था, लेकिन समय और परिस्थितियों की वजह से वह भूमिका उन्होंने नहीं की.

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संस्कार और संस्कृति के प्रतीक

कुणाल सिंह की सबसे बड़ी खासियत यही रही कि उन्होंने भोजपुरी सिनेमा को सिर्फ ग्लैमर और मसाले से नहीं, बल्कि संस्कार, सामाजिक मूल्यों और भावनाओं से जोड़ा. उनका मानना है कि फिल्में केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना होती हैं.

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आज जब भोजपुरी सिनेमा में नए चेहरे और नए प्रयोग हो रहे हैं, तब भी कुणाल सिंह की सादगी, अभिनय और मूल्य आधारित सोच एक मिसाल बनी हुई है. वह न सिर्फ एक कलाकार हैं, बल्कि भोजपुरी अस्मिता के सच्चे प्रतिनिधि भी हैं.

लेखक परिचय: रंजीत कुमार सम्राट सहारा समय (डिजिटल) के बिहार हेड हैं. 20 साल से बिहार के हर जिले की सियासत पर गहरी नज़र रखते हैं. पिछले दो दशक से बिहार की हर खबर को अलग नजरिये से पाठक को समझाते रहे हैं.

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