पटना: बिहार की राजधानी गुरुवार को कांग्रेस के विरोध मार्च की गूंज से सराबोर रही. अडाणी ग्रुप को जमीन दिए जाने के खिलाफ निकले इस मार्च में सड़कों पर “जमीन चोर, गद्दी छोड़” जैसे नारे गूंजते रहे. कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का आरोप था कि राज्य सरकार ने भागलपुर में 1050 एकड़ उपजाऊ जमीन और 10 लाख पेड़ महज एक रुपए सालाना पर अडाणी ग्रुप को सौंप दिए हैं. यह आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने सरकार पर किसानों की जमीन जबरन छीनने और दबाव में रजिस्ट्री कराने का बड़ा आरोप लगाया.
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विरोध मार्च पटना स्थित सदाकत आश्रम से शुरू होकर राजेंद्र बाबू की समाधि और बांसघाट तक पहुंचा. इस दौरान राजधानी में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. कई जगहों पर पुलिस बल की तैनाती की गई और राजापुल पर बैरिकेडिंग कर कांग्रेस नेताओं को रोकने की कोशिश की गई. हालांकि, भीड़ और नेताओं के उत्साह ने इसे और ज्यादा उग्र बना दिया. मार्च में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम, कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान और विधान परिषद में कांग्रेस दल के नेता डॉ. मदन मोहन झा भी शामिल हुए.
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कांग्रेस नेताओं ने दावा किया कि किसानों की आवाज दबाने के लिए सरकार ने 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे से पहले कई किसानों को नजरबंद कर दिया था. किसानों को पीएम तक अपनी समस्या पहुंचाने का मौका तक नहीं दिया गया. राजेश राम ने कहा कि यह सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है और अडाणी को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों का बलिदान लिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस अन्याय के खिलाफ सड़क से सदन तक लड़ाई लड़ेगी.
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दिल्ली में भी कांग्रेस ने इसी मुद्दे पर सरकार को घेरा था. 15 सितंबर को कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पीएम मोदी पर सीधा हमला बोला. उन्होंने कहा था कि बिहार में वोट की राजनीति के साथ-साथ अब किसानों की जमीन भी कॉर्पोरेट घरानों को सौंप दी जा रही है. उनका बयान पटना के मार्च में गूंजते नारों और विरोध का अहम आधार बना.
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बिहार में विधानसभा चुनाव करीब हैं और इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस का यह आक्रामक विरोध महज एक मार्च नहीं बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. विपक्ष का मानना है कि किसानों की जमीन और कॉर्पोरेट पर बढ़ती निर्भरता जैसे मुद्दे मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं. वहीं, सत्ता पक्ष के लिए यह एक नई चुनौती होगी कि वह इस आरोप का कैसे जवाब देता है.
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गुरुवार का यह मार्च दिखाता है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में किसानों और कॉर्पोरेट का मुद्दा केंद्र में रहेगा. कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह इस मसले को जनता तक ले जाएगी और इसे चुनावी मुद्दा बनाएगी. सरकार की चुप्पी और विपक्ष की सक्रियता दोनों मिलकर इस विवाद को और गहरा कर सकती हैं. पटना की सड़कों पर जिस तरह का माहौल दिखा, उससे साफ है कि यह विरोध आने वाले महीनों में और भी बड़ा रूप ले सकता है.