बक्सर का एसडीएम कोर्ट गुरुवार को न्याय का मंदिर कम और कुश्ती का अखाड़ा ज्यादा नजर आया. वजह वही लोग थे जो कानून और संविधान की रक्षा का दावा करते हैं. काले कोट वाले अधिवक्ता खुद ही कानून की किताब को किनारे रखकर हाथापाई पर उतर आए.
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धारा 107 के एक मामले की सुनवाई चल रही थी. एसडीएम अविनाश कुमार ने आरोपित को जेल भेजने का आदेश दिया. इस पर अधिवक्ताओं ने आपत्ति जताई और कह डाला कि धारा 107 में जेल का प्रावधान ही नहीं है. बात यहीं तक रहती तो बहस कहलाती, लेकिन मामला धक्का-मुक्की, मारपीट और दुर्व्यवहार तक पहुंच गया. वायरल वीडियो में साफ दिख रहा है कि वकीलों का झुंड एसडीएम के सुरक्षा गार्ड को पीट रहा है और मोबाइल तक छीन ले गया.
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डीएसपी गौरव पांडेय ने घटना की पुष्टि की है और कहा है कि साक्ष्यों के आधार पर एफआईआर होगी. वहीं अधिवक्ता संघ ने पलटवार किया है कि मारपीट और मोबाइल छीनने के आरोप पूरी तरह झूठे हैं. उनके अनुसार, असली दोषी एसडीएम हैं जो मनमानी फैसले सुनाते हैं और वकीलों से दुर्व्यवहार करते हैं.
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कटाक्ष यही है कि जनता जिन वकीलों को न्याय का साथी मानती है, वही कोर्ट में खुद हिंसा कर बैठे. कानून के रखवाले ही जब कानून तोड़ने लगें तो जनता किससे उम्मीद करे? अदालत की चौखट पर जहां तर्क-वितर्क होना चाहिए, वहां मुक्के-घूंसे और आरोप-प्रत्यारोप का तमाशा हो रहा है.
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सवाल सीधा है—क्या वकीलों के लिए कानून अलग है और आम जनता के लिए अलग? अगर काले कोट की आड़ में मारपीट और हंगामा होगा तो न्यायालय का सम्मान कैसे बचेगा?
नोट:- वायरल वीडियो का सहारा समय डिजिटल पुष्टि नही करता है.
रिपोर्ट: धीरज कुमार, बक्सर.