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Jamui : स्टेचर नहीं, गोद में मरीज… स्वास्थ्य मंत्री से पूछने पर मिला ‘नो कमेंट’!

जमुई: बिहार सरकार लगातार बड़े-बड़े दावे करती है कि स्वास्थ्य सेवाएं गाँव-गाँव तक पहुंचाई जा रही हैं. करोड़ों के बजट और योजनाओं का ढोल पीटा जाता है. लेकिन हकीकत यह है कि जमुई जैसे जिले के सदर अस्पताल में मरीज को इलाज के लिए स्टेचर तक नसीब नहीं होता. मजबूर परिजन अपनी पत्नी, माँ या बेटे को गोद में उठाकर इमरजेंसी से लैब तक ले जाने को विवश हैं. और यह सब उस वक्त हो रहा है, जब खुद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय उसी जिले में मौजूद थे.

Jamui : 5 दिन में 3 मरीज… परिजन ही बन गए स्ट्रेचर!

सोमवार को मंत्री जी मंच से विकास की बात कर रहे थे, पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे थे, और ठीक उसी समय सदर अस्पताल में स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ रही थी. यह वही अस्पताल है जहां लाखों लोग अपनी जान बचाने की उम्मीद में आते हैं. लेकिन यहां तो व्यवस्था ऐसी है कि मरीज के परिजन को खुद “कूली” बनना पड़ रहा है. इस कार्यक्रम में स्थानीय विधायिका श्रेयसी सिंह की भी उपस्थिति रही.

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सबसे शर्मनाक स्थिति तब आई जब इस पूरे मामले पर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉक्टर सैयद नौशाद अहमद से सवाल पूछा गया. बजाय समस्या स्वीकार करने और समाधान की दिशा में आश्वासन देने के, उन्होंने बेतुके अंदाज में कहा – “दो नहीं, हजार मरीज भी गोद में जाएंगे.” यह बयान अपने आप में साबित करता है कि सरकार का तंत्र कितना संवेदनहीन और लापरवाह हो चुका है.

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सरकार का दावा है कि अस्पतालों में आधुनिक सुविधाएं हैं, दवाइयों की कमी नहीं है, और मरीजों के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि यहाँ स्टेचर चलाने वाला कर्मी तक उपलब्ध नहीं है. उपकरण धूल फांक रहे हैं, डॉक्टर व कर्मियों की भारी कमी है, और जिम्मेदार अधिकारी मरीज को गोद में ढोने की स्थिति को सामान्य बता रहे हैं.

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बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल यह है कि गाँव-देहात छोड़िए, जिला मुख्यालय तक में मरीज को इंसानी गरिमा नहीं मिल पा रही है. किसी भी सभ्य समाज में अस्पताल में स्टेचर या व्हीलचेयर सबसे बुनियादी सुविधा होती है. लेकिन जब सरकार के मंत्री के अपने जिले में यह हालत है, तो यह समझना मुश्किल नहीं कि दूरदराज के अस्पतालों का हाल कैसा होगा.

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इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बिहार में स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से सिस्टम की नाकामी का शिकार है. डॉक्टर से लेकर कर्मचारी तक जवाबदेही से भाग रहे हैं. मंत्रीगण केवल मंच से भाषण दे रहे हैं और वास्तविक समस्याओं की ओर आंख मूंदे बैठे हैं

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दरअसल, यह सिर्फ जमुई का मामला नहीं है, यह पूरे बिहार का आईना है. आज हर जिले से ऐसी खबरें आ रही हैं—कहीं प्रसव पीड़ा में महिला को चारपाई पर अस्पताल लाया जा रहा है, कहीं एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच रहा, तो कहीं दवा के लिए मरीज को निजी दुकान का चक्कर लगाना पड़ रहा है.

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सरकार का काम सिर्फ भाषण देने या जिम्मेदारी टालने का नहीं है. यदि मंत्री जी वास्तव में ईमानदार हैं, तो उन्हें चाहिए कि अपने कार्यकर्ताओं की भीड़ से निकलकर सीधे सदर अस्पताल पहुंचें और देखें कि लोग किस हाल में हैं.

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बिहार की जनता अब इस बहानेबाजी से ऊब चुकी है. लोग पूछ रहे हैं – “अगर स्टेचर तक नसीब नहीं है, तो करोड़ों का स्वास्थ्य बजट आखिर जाता कहां है?”

रिपोर्ट: विवेक कुमार, जमुई.