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भोजपुर का पहला एम्फीबियस हाउस बना आकर्षण, मुख्य सचिव ने गुपचुप किया निरीक्षण

Bhojpuri's first amphibious house becomes an attraction, Chief Secretary secretly inspects it.

Sahara Samay Exclusive आरा, भोजपुर : जिले के मौजमपुर गंगा घाट पर बना जिले का पहला एम्फीबियस (Amphibious) हाउस इन दोनों न केवल तकनीकि नवाचार के कारण चर्चा में है, बल्कि इसे लेकर बिहार सरकार की गंभीर रुचि भी साफ तौर पर दिखाई देने लगी है। बाढ़ से बचाव के सपने से जन्मी यह अनोखी पहल इतनी प्रभावशाली साबित हुई कि बिहार के मुख्य सचिव राजधानी पटना से पूरी तरह सादगी और गोपनीयता के साथ भोजपुरी पहुंचे और निर्माणाधीन एम्फीबियस हाउस का निरीक्षण किया।

बाढ़ में तैरने वाला घर, सामान्य दिनों में जमीन पर स्थिर

एम्फीबियस हाउस ऐसा अनुभव आवास है जो सामान्य परिस्थितियों में जमीन पर मजबूती से खड़ा रहता है, लेकिन बाढ़ आने पर स्वत: पानी पर तैरने लगता है। इसकी संरचना इस तरह तैयार की गई है कि जलस्तर बढ़ते ही या सुरक्षित रूप से ऊपर उठ जाता है और बाढ़ उतरने के बाद फिर अपनी पुरानी स्थिति में आ जाता है।

बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए इसे स्थाई, सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल समाधान माना जा रहा है। भोजपुरी में इससे पहले फ्लोटिंग हाउस का प्रयोग किया गया था, जिसके सकारात्मक अनुभव के बाद अब एम्फीबियस हाउस का विकास किया गया है।

मुख्य सचिव का सादगी भरा और पूरी तरह गोपनीय निरीक्षण

इस अनोखी परियोजना को देखने के लिए मुख्य सचिव बिना किसी पूर्व सूचना मौजमर गंगा घाट पहुंचे। निरीक्षण के दौरान ना तो मीडिया को जानकारी दी गई और ना ही किसी तरह का औपचारिक स्वागत रखा गया। सूत्रों के अनुसार, जिलाधिकारी द्वारा रेड कारपेट बिछाने की तैयारी भी की गई थी, लेकिन मुख्य सचिव के निर्देश पर इसे हटा दिया गया। उनका स्पष्ट उद्देश्य था कि परियोजना की वास्तविक स्थिति, गुणवत्ता और उपयोगिता का आकलन बिना किसी दिखावे की किया जाए।

इंजीनियरों से ली तकनीकी जानकारी, योजनाओं पर की चर्चा

निरीक्षण के दौरान मुख्य सचिव ने एम्फीबियस हाउस के निर्माण से जुड़े इंजीनियर प्रशांत उपाध्याय, शाशा उपाध्याय और उनकी टीम से विस्तृत बातचीत की। उन्होंने परियोजना की तकनीकी संरचना, सामग्री की गुणवत्ता, सुरक्षा उपायों और दीर्घकालिक टिकाऊपन से जुड़े सवाल कीए।

इसके साथ ही मौजमपुर घाट के समीप जिले में संचालित विकासात्मक एवं सरकारी योजनाओं की भी जानकारी ली और अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।

कोविड काल में जन्मी सोच, किफायती मॉडल बन उम्मीद

इंजीनियर प्रशांत उपाध्याय ने बताया कि इस परियोजना की कल्पना कोविड काल के दौरान हुई थी। हर साल बाढ़ में हजारों घरों को डूबते देखकर उन्होंने बाढ़ से स्थाई समाधान की दिशा में काम शुरू किया। आर्थिक सहयोग के अभाव में भी उन्होंने अपने संसाधनों से पहले बक्सर में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। बाद में इसे भोजपुरी लाया गया, जहां पिछले 3 वर्षों से हर मौसम में इसकी मजबूती, संतुलन और उपयोगिता की लगातार जांच की जा रही है।

पहले एम्फीबियस मॉडल करीब 6 लख रुपए की लागत में तैयार किया गया था, जिसे आम लोगों के लिए महंगा माना गया। इसके बाद टीम ने लगभग 2 लाख रुपए की लागत में एक किफायती मॉडल विकसित किया, जिसमें एक कमरा, एक रसोई और बाहर छोटा सा खुला क्षेत्र शामिल है। इसके साथ ही एक कम्युनिटी सेंटर मॉडल भी तैयार किया गया है, जो बाढ़ के समय सामुदायिक गतिविधियों और प्रशिक्षण के लिए उपयोगी हो सकता है।

मौजमपुर गंगा घाट पर खड़ा यह एम्फीबियस हाउस केवल एक निर्माण नहीं, बल्कि बाढ़ से जस्ट बिहार के लिए भविष्य की नई उम्मीद है। प्रशासन की खामोशी और मुख्य सचिव का गोपनीय निरीक्षण इस बात के संकेत दे रहे हैं कि आने वाले समय में यह मॉडल राज्य स्तरीय बाढ़ प्रबंधन योजना का हिस्सा बन सकता है।

रिपोर्ट : ओ.पी. पाण्डेय

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