राजस्थान की राजनीति में एक पूरा ऐसा मीडिया-नेटवर्क सक्रिय बताया जाता है, जिसे कई लोग “कांग्रेस के कार्यकर्ता पत्रकारों का दल” कहते हैं। बीजेपी नेताओं का मानना है कि यह समूह अक्सर कांग्रेस की लाइन के साथ चलता है और उसकी विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगातार भूमिका निभाता है।
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2018 से 2023 के बीच जब राज्य में कांग्रेस सरकार थी, तब यह आरोप भी बार-बार सामने आए कि कुछ पत्रकारों और मीडिया इकाइयों को सरकारी विज्ञापनों, इंफ्लुएंसर टेंडरों और पीआर फंड्स का लाभ मिला। आलोचकों के अनुसार, इसी दौरान कई संवेदनशील मामलों—विशेषकर पेपर लीक जैसे मुद्दों—को उतनी प्रमुखता नहीं मिली, जबकि सरकार की योजनाओं और फैसलों को खूब सकारात्मक तरीके से पेश किया गया।
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2023 में कांग्रेस की हार और नए शासन के बाद सरकारी विज्ञापन बंद हुए, तो विपक्षी खेमे में चर्चा शुरू हुई कि यही समूह अब कांग्रेस के लिए “Guns for Hire” की तरह काम कर रहा है—अर्थात् प्रति कहानी या प्रति कैंपेन के आधार पर सामग्री तैयार करता है।
बीजेपी नेता अक्सर आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस वॉर रूम से रोज़ाना ट्वीट, वीडियो बाइट्स, डेटा, और कई बार अप्रमाणित सर्वे भेजे जाते हैं, जिन्हें यह नेटवर्क बिना अधिक जाँच-पड़ताल के आगे बढ़ा देता है।
मौजूदा भाजपा सरकार के निर्णय—जैसे नए जिले पुनर्गठन, मतदाता सूची सफाई अभियान, दवाइयों व हेल्थ से जुड़े मामलों—पर यह समूह लगातार आक्रामक रहता है। जबकि दूसरी ओर, आरोप है कि विपक्ष की गलतियाँ या बड़े विवाद अक्सर इनकी नज़र से छूट जाते हैं।
2028 के चुनाव तक, यह पूरी मीडिया-इकोसिस्टम और भी सक्रिय दिखाई दे रही है, जहाँ कई पर्यवेक्षक निष्पक्षता की कमी और एकतरफ़ा राजनीतिक लक्ष्य—कांग्रेस की सत्ता वापसी—को इसका प्राथमिक उद्देश्य बताते हैं।
जोजरी नदी से संबंधित मामला भी अत्यंत संवेदनशील है। इस पर तकनीकी शोध और प्रशासनिक प्रक्रिया पहले से जारी है। शिकायतकर्ता ने स्वयं भी CMO के जवाब से संतुष्टि व्यक्त की है। इसके बावजूद, आलोचकों का कहना है कि वही “कार्यकर्ता पत्रकार” इस मुद्दे को लगातार हवा दे रहे हैं और शिकायतकर्ता के नाम या भावना का उपयोग अपनी राजनीतिक लाइन को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं।
















