नई दिल्ली : Teenagers के रिश्ते आज के समय में जितने आम हो गए हैं. उतने ही जटिल भी होते जा रहे हैं . सोशल मीडिया, फिल्मों और इंटरनेट से प्रभावित होकर किशोर उम्र के लड़के-लड़कियां रिलेशनशिप में आ तो जाते हैं. लेकिन कई बार यह समझ नहीं पाते कि यह प्यार है. आकर्षण है या केवल एक ट्रेंड .
वरिष्ठ काउंसलर डॉ. रश्मि सक्सेना कहती हैं, “किशोरावस्था में दिमाग और भावनाएं तेज़ी से विकसित होती हैं. इस उम्र में प्यार का एहसास होना स्वाभाविक है, लेकिन कई बार यह असुरक्षा, अकेलापन या ग्रुप प्रेशर का परिणाम होता है, न कि सच्चा भावनात्मक जुड़ाव .”
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स्कूल और कॉलेजों में रिलेशनशिप को लेकर अक्सर ये सोच देखने को मिलती है कि “अगर रिलेशनशिप में नहीं हो, तो आउटडेटेड हो .” यह मानसिकता बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालती है .
वरिष्ठ काउंसलर डॉ. रश्मि सक्सेना कहती हैं, “कई बार किशोर दूसरों को देखकर या सोशल मीडिया पर ‘कपल गोल्स’ देखकर रिलेशनशिप में आते हैं, जबकि उन्हें खुद नहीं पता कि वे क्या चाहते हैं .”
भावनात्मक नुकसान भी संभव
किशोरावस्था में रिश्ते जल्दी टूटते भी हैं, जिससे डिप्रेशन, आत्मग्लानि या आत्मविश्वास में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. डॉ. रश्मि के मुताबिक, “अगर रिश्ते में संवाद और समझदारी नहीं है, तो यह टॉक्सिक बन सकता है . टीनएजर्स को खुद को पहले समझना ज़रूरी है .”
क्या करें माता-पिता?
- बच्चों से खुलकर बात करें
- उनके भावनात्मक बदलावों को नज़रअंदाज़ न करें
- सलाह देने से पहले सुनें
- उन्हें भरोसा दिलाएं कि वे आपकी जजमेंट के डर के बिना बात कर सकते हैं
Teenage रिश्ते न तो हमेशा गलत होते हैं और न ही हमेशा सच्चे. यह ज़रूरी है कि बच्चे और अभिभावक. दोनों समझें कि रिश्तों में आने से पहले भावनात्मक समझ, आत्म-परिपक्वता और संवाद कितना ज़रूरी है.
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