आज के आधुनिक युग में एक अहम मुद्दा बन गया है.जीवन का एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील चरण भी होता है, जो लगभग 10 से 18 वर्ष की उम्र के बीच आता है.यह वह समय होता है जब बच्चा शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से तीव्र बदलावों से गुजरता है.
हम अगर आज को देखते हुए चलें तो बहुत से टीनएजर्स एक दूसरा जीवन जी रहे हैं सोशल मीडिया के सहारे जहां उन्हें लाइक,कॉमेंट्स, पोस्ट्स ये सब बहुत लुभावित लगता है जिसके कारण वह अपनी असल जिंदगी से दूर होते जाते हैं.
टीनएजर्स पर सोशल मीडिया का इनफ्लुएंस
यह एक ऐसी उम्र है जहां पर टीनएजर्स पीर प्रेशर, ऑनलाइन गाइडेंस, इमोशनल बदलाव से गुजरता है, जिसमें उसको पूरी मदद करते है उसके माता पिता जो समझते है उस दौर को पर अब के दौर में सोशल मीडिया ने अपनी पकड़ बहुत मजबूत कर ली जिसके कारण माता पिता अनजान रह जाते है बच्चे के उस जीवन से जो वर्चुयल हो चुका है और रियलिटी से बहुत अलग भी.
सोशल मीडिया पर रील देखना, अलग अलग का तरीके का कंटेंट कंज्यूम करना हर बच्चे पर अलग प्रभाव डालता है जो हमेशा सकारात्मक नहीं होता तो ये अति महत्वपूर्ण है कि मां बाप आज कल बच्चों को समझे उन्हें रोक टोक की बजाय समझाए ताकि उन्हें सही और गलत का ज्ञान हो और वो अपने जीवन में सही डिसीजन लेने में सक्षम रहे.
हालांकि हम बढ़ते दौर में देखे तो बच्चों के लिए सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉम है जहां से वो बहुत कुछ सीख सकते है पर हर चीज़ की अच्छाई और बुराई होती है जिससे हमें स्वयं बचना होगा. बच्चे इस उम्र में समझ नहीं पाते और यही से वो उन दल दल में फंस जाते है जहां से निकलना भी कठिन साबित हो जाता है.
उदाहरण: एडोलसेंस सीरीज
इसका चलता फिरता उदाहरण अभी हाल की ही एक सीरीज एडोलसेंस में दिया है . जहां 14 साल का बच्चा अपनी टीनएजर्स दौर में एक घटना से गुजरता है, माता पिता उसके डिजिटल जीवन से अनजान होते है और दोस्ती, सेक्स को सिर्फ एक नज़रिए से उजागर करना , लड़कियों के साथ रिलेशनशिप में बनना ये सब एक आम सी बातें हो चुकी है जिससे हर टीनएजर्स के लिए जिससे वो 14 साल का लड़का भी गुजरता है और फिर कुछ ऐसा हो जाता है जिस पर यकीन करना भी मुश्किल होता है किसी की जान लेना वो भी उन नन्हे हाथों ये वो वास्तविकता बन जाती है जो हमें मजबूर करती है आज की पीड़ी को ये सही राह पर लाने के लिए पर क्या ये सोशल मीडिया उनको सही दिशा में ले जा रहा है या फिर एक वास्तविक जीवन की कहानी से उनको अलग कर रहा .
ये महत्त्वपूर्ण है कि बच्चों को आज़ादी मिलनी चाहिए पर साथ में गाइडेंस भी जो शायद उन्हें असली जीवन और डिजिटल जीवन की बीच की पतली रेखा को समझने में सक्षम बनाएंगी और वो सोशल मीडिया से देख कर उन चीजें से प्रेरित नहीं होंगे जिनका परिणाम हानिकारक साबित हो जाता है.
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