Relationship tips: “हम बात तो करते हैं, लेकिन समझते नहीं.” यह लाइन आजकल कई रिश्तों की सच्चाई बन गई है. शादीशुदा जोड़े हों या डेटिंग कपल्स. एक-दूसरे के करीब रहते हुए भी भावनात्मक रूप से दूर हो जाना अब आम है. इस दूरी का बड़ा कारण है कम्युनिकेशन गैप . पजेसिवनेस Love है या मेंटल बीमारी, डॉक्टर से जानें
लेकिन ये गैप कैसे बनते हैं? क्या वजहें हैं? और क्या इन्हें पाटना मुमकिन है?
कम्युनिकेशन गैप के आम कारण
टेक्नोलॉजी की ओवरडोज
हर वक्त मोबाइल में खोए रहना, सोशल मीडिया पर active रहना – लेकिन पार्टनर की बातों को नज़रअंदाज़ करना.
विशेषज्ञ राय:
“टेक्नोलॉजी हमारे कनेक्टेड होने का माध्यम है, लेकिन अगर यही दूरी का कारण बन जाए तो इसे सीमित करना ज़रूरी है.” — डॉ. नीलिमा घोष, साइकोलॉजिस्ट
व्यस्तता और थकावट
प्रोफेशनल लाइफ की भागदौड़ में पर्सनल स्पेस गायब हो जाती है. बातें करना ‘टाइम पास’ लगने लगता है.
भावनात्मक दूरी
जब एक पार्टनर खुद को अनसुना या अनदेखा महसूस करता है, तो धीरे-धीरे वो अपनी बातें बताना ही बंद कर देता है.
अनकही उम्मीदें और असहमति
“उसे समझना चाहिए”, “मुझे बोलने की ज़रूरत क्यों पड़े” – ये सोच अक्सर दिलों में दीवार बना देती है.
कपल्स के अनुभव
प्रियंका और करण (7 साल की शादी):
“हम दिनभर ऑफिस में बिजी रहते हैं. जब घर लौटते हैं, तो या तो मोबाइल या टीवी. पहले बातें खुद-ब-खुद हो जाती थीं, अब टाइम निकालना पड़ता है.”
आयुष और रीमा (डेटिंग कपल):
“रीमा अक्सर कहती है कि मैं उसे नहीं सुनता. जबकि मैं सुनता हूं, बस जवाब देने में देर हो जाती है. शायद मैं भावनाएं नहीं समझ पाता.”
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
डॉ. अनुराधा सेठ (रिलेशनशिप काउंसलर):
“कम्युनिकेशन सिर्फ बोलना नहीं होता – सुनना और समझना उतना ही ज़रूरी है. जब लोग ‘रिएक्ट’ करने की बजाय ‘रिस्पॉन्ड’ करना सीखते हैं, तब रिश्तों में गहराई आती है.”
डॉ. पवन खन्ना (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट):
“भावनात्मक दूरी अक्सर तब आती है जब हम बातों को टालते हैं, छोटे मुद्दों पर चुप रहते हैं और गहरे मसलों पर असहज हो जाते हैं. थेरेपी से लोग इन दीवारों को तोड़ पाते हैं.”
समाधान – कम्युनिकेशन गैप कैसे दूर करें?
डेली 10 मिनट रूल:
बिना फोन, टीवी के – सिर्फ एक-दूसरे से दिन के बारे में बात करें.
Active Listening अपनाएं:
सिर्फ सुनें नहीं, समझें. इंटरप्ट करने की बजाय सामने वाले को अपनी बात कहने दें.
Feelings को शब्द दें:
“तुम हमेशा ऐसा करते हो” जैसे जजमेंटल वाक्यों की जगह “मुझे ऐसा महसूस होता है” कहें.
डिजिटल डिटॉक्स टाइम:
हर दिन कुछ समय बिना मोबाइल/डिवाइस के साथ बिताएं.
प्रोफेशनल हेल्प लेने में संकोच न करें:
कपल थेरेपी से संवाद के पैटर्न सुधारे जा सकते हैं.
कम्युनिकेशन की कमी धीरे-धीरे रिश्ते को खामोशी में डुबो देती है. लेकिन समय रहते संवाद को फिर से जीवित किया जा सकता है – सिर्फ शब्दों से नहीं, ध्यान और दिल से.
“रिश्तों में साइलेंस से डरिए, शोर तो अभी उम्मीद ज़िंदा होने का सबूत है.”

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