Why don’t people understand period pain?
Health Tips: हर महीने महिलाएं जिस शारीरिक और मानसिक बदलाव से गुजरती हैं. वह सिर्फ एक जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव भी है. फिर भी समाज में आज भी Period Pain, थकावट और मूड स्विंग्स (mood swings) को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई जाती . कई लोग इसे “बहाना” या “ओवर रिएक्शन” मान लेते हैं . इस विषय पर बात की गई वरिष्ठ गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. रचना अग्रवाल (एम्स, दिल्ली) से, जिन्होंने खुलकर बताया कि क्यों Period Pain एक वास्तविक स्वास्थ्य मुद्दा है और इसे समझने की ज़रूरत क्यों है?
Health Tips: Period Pain कितना गंभीर हो सकता है?
डॉ. रचना बताती हैं कि “हर महिला का शरीर अलग होता है . कुछ महिलाओं को हल्का दर्द होता है, जबकि कुछ को इतनी तकलीफ होती है कि उन्हें चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है .”
इस दर्द को Dysmenorrhea कहा जाता है, जो पेट के निचले हिस्से, पीठ और जांघों तक फैल सकता है . इसके साथ जी मिचलाना, सिरदर्द, चक्कर, कमजोरी और थकावट भी हो सकती है .
समाज क्यों नहीं समझता इसे?
टैबू और शर्म
अभी भी कई घरों में पीरियड्स पर खुलकर बात नहीं की जाती . नतीजा – युवा लड़कियां भी अपने दर्द को दबाकर सहती रहती हैं .
“नॉर्मल” मान लिया गया दर्द
डॉ. रचना कहती हैं, “हमने महिलाओं के दर्द को इतना सामान्य बना दिया है कि वो अगर तकलीफ बताएं भी, तो उन्हें ओवर-सेंसिटिव कहा जाता है .”
पुरुषों में जागरूकता की कमी
अधिकतर पुरुष पीरियड्स के फिजिकल और हार्मोनल प्रभावों को नहीं समझते . उन्हें यह सिर्फ एक ‘मासिक प्रक्रिया’ लगती है, जिसमें कोई खास परेशानी नहीं होती .
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मानसिक प्रभाव भी होते हैं
पीरियड्स सिर्फ फिजिकल नहीं, मेंटल हेल्थ को भी प्रभावित करते हैं .
- मूड स्विंग्स
- चिड़चिड़ापन
- एंग्जायटी
- डिप्रेशन जैसे लक्षण PMS (Premenstrual Syndrome) का हिस्सा हो सकते हैं .
“एक महिला जब दर्द में भी ऑफिस, घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी निभा रही होती है, तब उसे और ज़्यादा सहानुभूति की जरूरत होती है, न कि उपेक्षा की .” – डॉ. रचना
क्या करना चाहिए?
परिवार:
- बेटियों को शर्म नहीं, समझ दें
- पुरुषों को पीरियड्स एजुकेशन दें
- ऑफिस में पीरियड्स लीव को लेकर सहानुभूतिपूर्ण नीति बनाएं
महिलाएं:
- अत्यधिक दर्द या अनियमित पीरियड्स हो तो डॉक्टर से मिलें
- अपनी हालत को नजरअंदाज न करें
- रेस्ट और सेल्फ केयर को प्राथमिकता दें
पीरियड्स कोई “बहाना” नहीं, बल्कि एक संपूर्ण शारीरिक और मानसिक चुनौती है . इस पर चुप्पी नहीं, बातचीत की जरूरत है .
जैसा कि डॉ. रचना कहती हैं, “अगर एक महिला कहती है कि उसे पीरियड्स में दर्द है, तो सबसे पहला रिएक्शन सहानुभूति और समझ होना चाहिए, न कि सवाल .”
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