Teenage वह दौर है जब शरीर और मन दोनों में तेज़ बदलाव आते हैं . लेकिन भारत में आज भी सेक्शुअल हेल्थ और यौन शिक्षा पर खुली चर्चा से लोग कतराते हैं . यह चुप्पी न सिर्फ़ गलतफहमियों को जन्म देती है, बल्कि यौन संचारित रोगों (STDs/STIs) के खतरे को भी बढ़ा देती है . Teenage में डिप्रेशन और सोशल विड्रॉल: Doctor Advice
खतरे की अनदेखी
गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. सुमिता वर्मा कहती हैं, “कई किशोर-युवा असुरक्षित यौन संबंध बना लेते हैं क्योंकि उन्हें कंडोम, सुरक्षित सेक्स या संक्रमण के लक्षणों के बारे में सही जानकारी नहीं होती . अक्सर शर्म या डर की वजह से वे जांच कराने भी नहीं जाते .”
HIV, गोनोरिया, क्लैमाइडिया और HPV जैसी बीमारियां शुरुआती स्टेज में अक्सर बिना लक्षण के रहती हैं, जिससे समय पर इलाज न मिलने पर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं . Health Tips: New Moms कैसे मैनेज करें घर और बच्चे?
एचपीवी वैक्सीन की अहमियत
सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. अजय मेहता बताते हैं, “HPV (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) सर्वाइकल कैंसर का एक बड़ा कारण है, लेकिन HPV वैक्सीन 9 से 14 साल की उम्र में दी जाए तो 90% से अधिक मामलों में यह खतरा टल सकता है . दुर्भाग्य से भारत में अब भी बहुत से माता-पिता इस वैक्सीन के बारे में नहीं जानते या इसे अनावश्यक समझते हैं .”
सेक्स एजुकेशन की कमी
यूनिसेफ के एक सर्वे के मुताबिक, भारत में केवल 30% किशोरों को ही स्कूल या घर पर बुनियादी सेक्स एजुकेशन मिलती है . बाकियों के लिए जानकारी का मुख्य स्रोत सोशल मीडिया या दोस्तों की अधूरी/गलत बातें होती हैं . यह स्थिति गलत धारणाओं, असुरक्षित व्यवहार और मानसिक दबाव को बढ़ाती है .
खामोशी तोड़ना ज़रूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि माता-पिता, शिक्षक और डॉक्टर — तीनों को मिलकर किशोरों के साथ सेक्शुअल हेल्थ पर खुले और तथ्य-आधारित संवाद करने चाहिए .
डॉ. वर्मा के अनुसार, “जितनी जल्दी बच्चे सही जानकारी पाएंगे, उतना ही वे अपने शरीर, स्वास्थ्य और रिश्तों के बारे में जिम्मेदार फैसले ले पाएंगे .”
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