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Indira Gandhi’s Emergency: नसबंदी की खौफनाक कहानी

आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 की रात, देश ने एक ऐसा दौर देखा, जो आज भी लोग याद करने से डरते है, वो थी 1975 की इमरजेंसी. ये कहानी सिर्फ इतिहास की किताबों तक नहीं सीमित है, बल्कि इसने पूरे देश की सोच बदल दी.

इमरजेंसी क्या है?

इमरजेंसी का मतलब है कि देश में कोई आंतरिक सुरक्षा का खतरा या समस्या है, जिसकी वजह से सरकार को कड़े नियम लगाने की जरूरत पड़ जाती है.इस दौरान लोगों की आज़ादी और अधिकारों पर रोक लग जाती है. सरकार को पूरी ताकत मिल जाती है और वो किसी भी नियम को तोड़ने वाले को सजा दे सकती है. ये कुछ ऐसा है, जैसे आपकी क्लास में अगर कोई टीचर बहुत सख्त हो जाए और हर किसी को चुप करा दे, तो वहां कोई भी अपनी बात नहीं रख पाता.

1975 में क्या हुआ था?

साल 1975 था, इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं. उनके खिलाफ एक चुनावी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी की है. कोर्ट ने उनकी सीट रद्द कर दी और उन पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी. ये खबर फैलते ही देश में हंगामा शुरू हो गया. लोग सड़कों पर उतर आए, विरोध प्रदर्शन होने लगे. सरकार के खिलाफ आवाजें उठने लगीं.

तभी अचानक एक रात, 25 जून 1975 को, राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद की सहमति से सरकार ने इमरजेंसी लगा दी. रात के अंधेरे में ही बड़े-बड़े नेताओं को उनके घर से उठाकर जेल में डाल दिया गया. अखबारों, रेडियो और टीवी पर सरकार की निगरानी शुरू हो गई. सच्ची खबरें छुपा दी गईं. अगर कोई सरकार के खिलाफ बोलता, तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता. ये सब इतनी तेजी से हुआ कि लोगों को समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है.

इमरजेंसी के दौरान क्या-क्या हुआ?

इमरजेंसी के दौरान देश में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्हें सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है. कुछ घटनाएं जो इस उस वक्त हुई –

  1. आज़ादी पर पाबंदी

लोगों को अपनी बात रखने, विरोध करने या सरकार के खिलाफ जाने की इजाज़त नहीं थी. अगर कोई भी ऐसा करता, तो उसे तुरंत जेल में डाल दिया जाता था. आर्टिकल (19) यानी स्वतंत्रता के हर अधिकार पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी.

  1. मीडिया पर सेंसरशिप

अखबार, टीवी और रेडियो पर सरकार की निगरानी शुरू हो गई. सच्ची खबरें छुपा दी जाती थीं. सिर्फ वही खबरें छपती थीं, जो सरकार को अच्छी लगती थीं. हर मीडिया दफ्तर में सरकार का एक आदमी बैठा दिया गया था, जिसकी अनुमति के बगैर कुछ भी न छाप सकता था न ही टीवी या रेडियो पे चलाया जा सकता था. जो पत्रकार या समाज सेवी इसपर सवाल उठते उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता था.

  1. विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी
    जयप्रकाश नारायण, एल.के. आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई जैसे बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया. इन्हें बिना किसी वजह के हिरासत में लिया गया.
  2. जबरदस्ती नसबंद

इमरजेंसी के दौरान सबसे डरावनी और विवादित घटनाओं में से एक थी—जबरदस्ती नसबंदी का अभियान. ये अभियान इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के आदेश पर चला था. सरकार का मानना था कि देश की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है, इसलिए इसे रोकने के लिए जोर-जबरदस्ती से नसबंदी करवाई जानी चाहिए. इसके लिए सरकारी कर्मचारियों और पुलिस को निश्चित “कोटा” पूरा करने के दबाव में रखा गया था. अगर वे इसे पूरा नहीं करते थे, तो उनकी सैलरी काट दी जाती थी, या उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता था

  1. चुनाव रोक दिए गए

इमरजेंसी के दौरान देश में चुनाव कराने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी. इसका मतलब ये था कि अगर किसी को सरकार के कामकाज से कोई शिकायत थी या वो सरकार बदलना चाहता था, तो उसके पास कोई रास्ता नहीं था. चुनाव नहीं होने की वजह से सरकार पर कोई भी दबाव नहीं बन पा रहा था. जो भी सरकार के खिलाफ बोलता, उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता था. इस तरह, सरकार अपनी मर्जी से कानून बना रही थी और उन्हें लागू कर रही थी, बिना किसी जवाबदेही के.

इमरजेंसी कैसे खत्म हुई

1977 में इंदिरा गांधी ने अचानक चुनाव कराने का फैसला किया. उन्हें लगा था कि लोग अब भी उन्हें वोट देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इमरजेंसी खत्म हो गई, सभी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया. चुनाव हुए और कांग्रेस को बड़ी हार मिली. देश में पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी की सरकार बनी. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और एक बड़ा बदलाव हुआ.

इमरजेंसी का क्या असर हुआ?

इमरजेंसी के बाद देश में बहुत कुछ बदल गया था.

  1. लोकतंत्र पर गहरा असर

इमरजेंसी को भारत के लोकतंत्र का सबसे काला दौर माना जाता है. लोगों को समझ आया कि आजादी और लोकतंत्र कितना कीमती है.

  1. संविधान में बदलाव

1978 में 44वें संशोधन के जरिए संविधान में बदलाव किया गया, ताकि भविष्य में कोई भी सरकार ऐसी इमरजेंसी आसानी से न लगा सके.

  1. राजनीतिक बदलाव

पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी की सरकार बनी. देश की राजनीति में नए मोड़ आए.

  1. लोगों की सोच बदली

इस घटना ने लोगों को जागरूक बना दिया. अब लोग अपने अधिकारों के लिए ज्यादा सतर्क रहने लगे. मीडिया, न्यूज़ चैनल्स और आम जनता ने ये सीख लिया कि सरकार को हमेशा चेक और बैलेंस में रखना चाहिए.

इमरजेंसी की याद में –
आज भी, जब कोई इमरजेंसी की बात करता है, तो लोग सतर्क हो जाते हैं. 25 जून को अब ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में याद किया जाता है. ये दिन हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र और आजादी को कभी खतरे में नहीं डालना चाहिए.

1975 की इमरजेंसी भारत के इतिहास का एक ऐसा दौर था, जिसने देश को हिलाकर रख दिया.इसने लोगों को याद दिलाया कि लोकतंत्र और आजादी कितनी कीमती है. ये कहानी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि एक सबक है, हमेशा अपनी आजादी की रक्षा करो और लोकतंत्र को मजबूत बनाओ!

आपको पता है कि आज भी कई देशों में लोकतंत्र नहीं है और लोगों को अपनी बात रखने की आजादी नहीं है. भारत में इमरजेंसी का दौर याद दिलाता है कि हमें अपनी आजादी को संभालकर रखना चाहिए.

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