मथुरा/ब्रज: दीपावली के अगले दिन मनाई जाने वाली गोवर्धन पूजा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है, यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की याद में मनाया जाता है. जब उन्होंने इंद्र के क्रोध से ब्रजवासियों की रक्षा की थी. इस दिन गोवर्धन महाराज की पूजा करने से सुख, समृद्धि और घर में अन्न की कभी कमी नहीं होती.
गोवर्धन पूजा का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन ब्रजवासियों को इंद्र देव की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का उपदेश दिया था, क्योंकि गोवर्धन ही सबको अन्न, जल और जीवन देता है. तभी से यह परंपरा हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को निभाई जाती है.
गोवर्धन महाराज की पूजा की विधि
सुबह स्नान और संकल्प
प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें, घर के आंगन या पूजा स्थल पर गोबर या मिट्टी से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक स्वरूप आकृति बनाएं.
गोवर्धन पर्वत का निर्माण
गोवर्धन को छोटे-छोटे ढेर के रूप में बनाकर फूल, पत्ते, अन्न, मिठाई और दीप से सजाएं। कई जगह गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है — इसे ‘अन्नकूट’ भी कहा जाता है.
अन्नकूट भोग लगाना
इस दिन विविध प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं — खासकर 56 भोग, इन्हें गोवर्धन महाराज को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार व समाज के लोगों में प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है.
आरती और परिक्रमा
पूजन के बाद गोवर्धन महाराज की आरती करें और सात परिक्रमा करें, परिक्रमा करते समय “गोवर्धन महाराज की जय” और “श्रीकृष्ण गोवर्धनधारी” का जयकारा लगाना शुभ माना जाता है.
गोवर्धन पूजा में क्या करें और क्या न करें
करें: सच्चे मन से पूजा और अन्नकूट भोग लगाएं, गायों की सेवा करें और उन्हें चारा खिलाएं, ब्रजवासियों की तरह सादगी से पर्व मनाएं.
न करें: इस दिन मांसाहार और मद्यपान से बचें, किसी से कटु वचन न कहें, गोवर्धन पूजा के समय जूते या चप्पल पहनकर न जाएं.
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