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RealMeaning: ‘मंगल भवनी अमंगल हारी’ का क्या है?

भारतीय संस्कृति और भक्ति परंपरा में “मंगल भवनी अमंगल हारी” केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है. यह पंक्ति अक्सर शुभ कार्यों की शुरुआत में बोली जाती है, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ और महत्व क्या है? आइए जानते हैं.

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यह पंक्ति कहां से आई है?
“मंगल भवनी अमंगल हारी” गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस की एक प्रसिद्ध चौपाई है, यह चौपाई भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन करती है और शुभता का आह्वान करती है. पूरा भाव इस प्रकार है “मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी.”

शब्दों का अर्थ
मंगल – शुभ, कल्याणकारी
भवनी – भवन/स्थान या उत्पत्ति का स्रोत
अमंगल – अशुभ, दुख या बाधाएं
हारी – हरने वाला, नष्ट करने वाला. यानी, जो शुभता का स्रोत हैं और हर प्रकार के अमंगल को दूर करने वाले हैं.

भावार्थ क्या है?
इस चौपाई का भावार्थ है कि भगवान श्रीराम मंगल के घर हैं और सभी अमंगल, दुख और बाधाओं को नष्ट करने वाले हैं, भक्त इस पंक्ति के माध्यम से प्रभु से कृपा और सुरक्षा की प्रार्थना करता है.

क्यों बोली जाती है यह पंक्ति?
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में पूजा, हवन या धार्मिक अनुष्ठान में, कठिन समय में मानसिक शांति के लिए, नकारात्मक ऊर्जा दूर करने के लिए मान्यता है कि इस पंक्ति के उच्चारण से मन में सकारात्मकता और विश्वास उत्पन्न होता है.

आज के समय में इसका महत्व
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में तनाव और चिंता आम है, ऐसे में यह पंक्ति मन को शांत करती है, आत्मबल बढ़ाती है, सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित करती है, इसी कारण यह पंक्ति आज भी लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है.

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