Belpatra in Shiva Puja: भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का विशेष महत्व माना गया है. चाहे सोमवार व्रत हो, महाशिवरात्रि या रोज की शिव पूजा. बेलपत्र के बिना शिव आराधना अधूरी मानी जाती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर शिवजी को बेलपत्र इतना प्रिय क्यों है और इसे पूजा में अनिवार्य क्यों माना गया है? आइए जानते हैं इसके पीछे के धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण.
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पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, बेलपत्र की उत्पत्ति माता लक्ष्मी के पसीने की बूंदों से हुई मानी जाती है, यही कारण है कि यह अत्यंत पवित्र माना जाता है. कहा जाता है कि बेलपत्र चढ़ाने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
त्रिदेव का प्रतीक है बेलपत्र
बेलपत्र की खास बात यह है कि इसके तीन पत्ते होते हैं, ये तीन पत्ते ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माने जाते हैं. इसी कारण बेलपत्र को शिवलिंग पर अर्पित करना त्रिदेवों की एक साथ पूजा के समान माना जाता है.
शिवजी के स्वरूप से जुड़ा संबंध
धार्मिक मान्यता है कि बेलपत्र का डंठल- शिव का स्वरूप, तीन पत्ते- शिव के त्रिनेत्र, इसी कारण बेलपत्र शिवजी के शरीर का ही एक रूप माना जाता है.
शास्त्रों में उल्लेख
शिव पुराण और स्कंद पुराण में बताया गया है कि बेलपत्र से की गई पूजा का फल हजार गुना अधिक होता है, यहां तक कहा गया है कि अगर कोई भक्त केवल बेलपत्र चढ़ाकर भी शिवजी की पूजा करता है, तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.
बेलपत्र चढ़ाने के नियम
हमेशा ताजा और हरा बेलपत्र चढ़ाएं, बेलपत्र उल्टा (डंठल नीचे) न रखें, फटा या सूखा बेलपत्र न चढ़ाएं, “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए अर्पित करें.
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