हिंदू पंचांग के अनुसार, कालभैरव जयंती का पर्व भगवान शिव के उग्र और रक्षक रूप भगवान कालभैरव को समर्पित होता है. यह दिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. साल 2025 में कालभैरव जयंती 12 नवंबर, बुधवार को पड़ रही है. यह पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति और समय के सदुपयोग का प्रतीक भी माना जाता है.
भगवान कालभैरव कौन हैं?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने अहंकारवश भगवान शिव का अपमान किया, तब शिव के क्रोध से कालभैरव का प्रकट हुआ, उन्होंने ब्रह्मा के एक सिर का विनाश किया, जिससे उन्हें “भैरव” कहा गया — अर्थात “भय को हरने वाला”, उन्हें ‘समय के देवता’ (Kaal ke Devta) भी कहा जाता है, जो व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसका समय तय करते हैं.
कालभैरव जयंती 2025 तिथि और मुहूर्त
तिथि: 12 नवंबर 2025, बुधवार
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 11 नवंबर रात 09:47 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 12 नवंबर रात 11:20 बजे तक
पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय: रात्रि 12 बजे के बाद (निशीथ काल)
पूजा विधि (Kaal Bhairav Jayanti Puja Vidhi)
प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें, घर या मंदिर में भगवान शिव और कालभैरव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. काले तिल, सरसों के तेल का दीपक जलाएं, कालभैरव अष्टक या भैरव चालीसा का पाठ करें, भगवान को काला वस्त्र, नारियल, धूप, पुष्प और इमरती अर्पित करें. काले कुत्ते को भोजन कराना विशेष रूप से शुभ माना जाता है. रात में निशीथ काल में “ॐ कालभैरवाय नमः” का जाप करें.
धार्मिक महत्व
कालभैरव जयंती पर पूजा करने से व्यक्ति को भय, रोग और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है. जीवन में समय और अनुशासन की समझ विकसित होती है. व्यापार, करियर और यात्रा से जुड़ी रुकावटें दूर होती हैं. पापों का नाश और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से काल (मृत्यु) का भी भय समाप्त हो जाता है.
काले कुत्ते को भोजन का विशेष महत्व
भैरव बाबा के वाहन काला कुत्ता माना जाता है, इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराने, उसकी सेवा करने और “भैरव अष्टक” का पाठ करने से व्यक्ति को शनि दोष, राहु-केतु दोष से मुक्ति मिलती है.
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