दुर्गा पूजा भारत के सबसे बड़े और रंगीन त्योहारों में से एक है, खासकर बंगाल और उत्तर भारत में इसका आयोजन बड़े उत्साह और भव्यता के साथ किया जाता है. इस पर्व में सिंदूर खेला का उत्सव महिलाओं और युवा लड़कियों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है.
सिंदूर खेला क्या है?
सिंदूर खेला दुर्गा पूजा के आखिरी दिन यानी विजयादशमी से पहले, महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, इस परंपरा में महिलाएं अपने आप को लाल रंग के सिंदूर में लपेटकर भगवान दुर्गा की शक्ति और देवी के रूप में शक्ति का प्रतीक मनाती हैं.
सिंदूर खेला के रीति-रिवाज
साफ-सफाई और तैयारी: घर और पंडाल को साफ-सुथरा किया जाता है, पूजा की जगह पर रंग-बिरंगे फूल और सजावट की जाती है.
सिंदूर का उपयोग: महिलाएं अपने माथे और गाल पर सिंदूर लगाती हैं, कभी-कभी यह पूरे शरीर पर भी लगाया जाता है.
भजन और गीत:
इस अवसर पर देवी गीत और भजन गाए जाते हैं, महिलाएं ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य करती हैं.
सांस्कृतिक कार्यक्रम:
कई स्थानों पर इस दिन विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.
भाई-बहेन का संबंध:
सिंदूर खेला का एक हिस्सा भाइयों और बहनों के रिश्ते को मजबूत करने के लिए समर्पित होता है.
सिंदूर खेला का महत्व
महिलाओं की शक्ति और देवी रूप का प्रतीक, घर में सौभाग्य और समृद्धि लाना, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता बढ़ाना, पारंपरिक रीति-रिवाजों को जीवित रखना.
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