अक्सर लोग मंदिर में प्रवेश करते समय अपने जूते-चप्पल बाहर उतार देते हैं. पर क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिर में नंगे पैर जाना इतना जरूरी क्यों माना गया है? क्या सच में नंगे पैर जाने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं? आइए जानते हैं इस परंपरा के धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों पहलू.
धार्मिक कारण — शुद्धता और सम्मान का प्रतीक
हिंदू धर्म में मंदिर को “ईश्वर का घर” माना गया है। जिस तरह हम अपने घर में प्रवेश से पहले जूते बाहर निकालते हैं, उसी तरह मंदिर में नंगे पैर जाना श्रद्धा और शुद्धता का प्रतीक है. शास्त्रों में कहा गया है कि — “जहां भगवान का वास होता है, वहां पवित्रता ही सबसे बड़ा आभूषण है.” माना जाता है कि नंगे पैर मंदिर में प्रवेश करने से भक्त और भगवान के बीच एक सीधा आध्यात्मिक संबंध बनता है.

आध्यात्मिक कारण — ऊर्जा का सीधा संचार
मंदिरों की जमीन प्रायः पवित्र धातुओं, ग्रेनाइट या संगमरमर से बनी होती है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह सतह पृथ्वी की सकारात्मक ऊर्जा को शरीर में प्रवाहित करती है. नंगे पैर चलने से यह ऊर्जा सीधे शरीर में प्रवेश करती है, जिससे मन शांत और आत्मा संतुष्ट होती है. वास्तव में, यही वजह है कि नंगे पैर मंदिर में ध्यान और प्रार्थना करने पर अधिक एकाग्रता महसूस होती है.
वैज्ञानिक कारण — हेल्थ बेनिफिट्स भी हैं
नंगे पैर चलने को विज्ञान भी लाभदायक मानता है, इससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. शरीर में एनर्जी बैलेंस बना रहता है. “ग्राउंडिंग इफेक्ट” से स्ट्रेस और एंग्जाइटी कम होती है, यानि यह परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी है.
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