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क्या बाघ की छाल पहनने से Shiva बने महाशक्तिशाली?

SpiritualKnowledge: भारतीय सनातन परंपरा में भगवान शिव को बाघ की छाल (बाघाम्बर) पहने हुए दिखाया जाता है. अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या बाघ की छाल पहनने से शिव महाशक्तिशाली बने? या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक और पौराणिक अर्थ छिपा है, आइए जानते हैं इस रहस्य की पूरी कहानी.

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शिव पहले से ही महाशक्तिशाली थे
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव किसी वस्त्र, अस्त्र या आभूषण से शक्तिशाली नहीं बने. वे आदि, अनंत और स्वयं शक्ति के स्रोत हैं। बाघ की छाल उनकी शक्ति का कारण नहीं, बल्कि उनकी शक्ति का प्रतीक है.

बाघ की छाल का पौराणिक महत्व
पुराणों में बाघ को हिंसा, क्रोध, अहंकार और असंयम का प्रतीक माना गया है. शिव का बाघ की छाल पहनना यह दर्शाता है कि शिव ने हिंसा और अहंकार पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली है, वे प्रकृति की सबसे उग्र शक्ति को भी नियंत्रित कर सकते हैं. योग और तप से उन्होंने इंद्रियों को वश में कर लिया है.

दारुक वन की कथा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार दारुक वन के अहंकारी ऋषियों ने शिव की परीक्षा लेने के लिए एक भयानक बाघ उत्पन्न किया. शिव ने उस बाघ का वध किया और उसकी छाल को वस्त्र के रूप में धारण किया, यह घटना यह दर्शाती है कि ज्ञान के आगे अहंकार टिक नहीं सकता. शिव केवल विनाशक नहीं, बल्कि अहंकार के विनाशक हैं.

योग और ध्यान का प्रतीक
योग शास्त्रों में माना जाता है कि बाघ की छाल पर बैठकर ध्यान करने से साधक को स्थिरता मिलती है, शिव का बाघाम्बर पहनना यह बताता है कि वे महायोगी हैं सांसारिक सुखों से पूर्णतः विरक्त हैं, संयम और तपस्या उनके जीवन का मूल है.

आध्यात्मिक संदेश
बाघ की छाल हमें यह संदेश देती है कि सच्ची शक्ति बाहरी वस्तुओं में नहीं, आत्मसंयम और ज्ञान में है. जो अपने भीतर के क्रोध और अहंकार को जीत लेता है, वही वास्तव में शक्तिशाली होता है.

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