आज छठ महापर्व में संध्या अर्घ्य का दिन है, आज शाम के समय अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. संध्या अर्घ्य के अवसर पर कोसी भरी जाती है. लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा पूरे देश में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है, इस पर्व का हर चरण अत्यंत पवित्र और प्रतीकात्मक होता है. सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले कोसी भरने की परंपरा इस पर्व का एक अहम हिस्सा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर छठ पूजा में कोसी क्यों भरी जाती है और इसका क्या धार्मिक महत्व है? आइए जानते हैं.
क्या है कोसी भरना?
कोसी भरना छठ पूजा के तीसरे दिन, यानी संध्या अर्घ्य से पहले की जाने वाली एक महत्वपूर्ण धार्मिक रस्म है, इसमें मिट्टी या पीतल के दीपदान (कोसी) में पांच या सात दीपक रखे जाते हैं और उसे केले के पेड़ या बांस के डंडे से बांधकर जलाया जाता है. महिलाएं कोसी जलाकर सूर्य देव और छठी मईया से परिवार की खुशहाली और संतान की दीर्घायु की कामना करती हैं.
धार्मिक महत्व
मान्यता है कि कोसी भरने से परिवार में समृद्धि आती है और सूर्य देव प्रसन्न होकर सुख-शांति का आशीर्वाद देते हैं. कहा जाता है कि दीपक का प्रकाश अंधकार को दूर करता है, ठीक उसी प्रकार यह क्रिया नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है. शास्त्रों के अनुसार, कोसी भरने की परंपरा सूर्योपासना और प्रकृति पूजा का प्रतीक है. सूर्य की किरणों से जीवन का हर स्रोत जुड़ा है, और दीपक का प्रकाश उसी ऊर्जावान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है.
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