लखीसराय: केंद्रीय विद्यालय लखीसराय के नए भवन का सोमवार को लोकार्पण हुआ और इस अवसर पर जिलाधिकारी मिथिलेश मिश्र ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि इस विद्यालय के अस्तित्व को बचाने का श्रेय राजनीतिक दावों से नहीं, बल्कि सच्चे समाजसेवियों और अभिभावकों के योगदान से जाता है.
करीब दस साल पहले, 2014-15 में जब केंद्रीय विद्यालय लखीसराय का अस्तित्व खतरे में था, तब स्थानीय जनप्रतिनिधि हाथ पर हाथ धरे बैठे थे और इसे अपनी उपलब्धि बनाने का सपना देख रहे थे. भवन डैमेज घोषित हो गया था और कक्षाओं में नामांकन पर रोक लगी थी. बच्चों को झाझा और जमालपुर केंद्रीय विद्यालय में भेजने की योजना बन रही थी.
तब के समय में ही प्राचार्य अशोक कुमार सिंह और स्थानीय अभिभावकों ने कदम बढ़ाया और पंडित मदन मोहन मालवीय के आदर्शों से प्रेरणा लेकर स्वयं चंदा जमा कर भवन की मरम्मत करवाई. ग्राउंड बिल्डिंग में दो अतिरिक्त कमरे भी बनवाए गए. प्राचार्य सत्य नारायण मीणा की पहल पर शैक्षणिक सत्र 2016-17 में नामांकन फिर शुरू हुआ.
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इस उपलब्धि में समाजसेवक और व्यवसायियों जैसे प्रवीण कुमार सोनी, शैलेश पोद्दार, सुबीन कुमार वर्मा आदि की भूमिका अहम रही. लोकार्पण के समय कई राजनीतिक दावेदार अपनी झोली भरने आए, लेकिन डीएम मिथिलेश मिश्र ने साफ कर दिया – इस विद्यालय की असली तारीफ़ उनका हक़ है जिन्होंने सच में योगदान दिया.
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जिलाधिकारी ने कहा, “किसी भी बड़े संस्थान को बचाने में सभी का सहयोग जरूरी है. राजनीति से इसे जोड़ने की कोशिश न करें.” समाजसेवकों ने डीएम की निष्पक्षता की सराहना करते हुए कहा कि आखिरकार राजनीति छोड़कर शिक्षा का काम होना चाहिए, न कि फोटो-ऑप का.
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लोकार्पण समारोह लखीसराय वासियों के लिए गौरव का पल रहा और यह कहानी यह साबित करती है कि सच्चा योगदान हमेशा चमकता है, चाहे राजनीति कितनी भी चमक-दमक दिखाए.
