बिहार की राजनीति में अब बहस मुद्दों पर नहीं, बल्कि अपशब्दों और हंगामों पर हो रही है। कभी प्रधानमंत्री की माँ को गाली दी जाती है, तो कभी विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की माँ पर अपशब्द कसे जाते हैं। और अब गया में प्रशांत किशोर की सभा से पहले पोस्टर फाड़े जाते हैं, झंडे लहराए जाते हैं और बैनर जलाए जाते हैं। सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र की ज़मीन पर अब मर्यादा की कोई जगह बची है, या फिर बिहार की राजनीति गाली-गलौज और अराजकता की भेंट चढ़ चुकी है?
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बिहार की राजनीति इस समय दो विरोधाभासी घटनाओं के बीच फंसी दिख रही है. एक ओर वोटर अधिकार यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माँ को लेकर अपशब्द कहे जाने का मामला सामने आया, तो दूसरी ओर विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव की सभा में चिराग पासवान की माँ को लेकर अपशब्द बोले गए थे. राजनीति में विचारों का टकराव होना स्वाभाविक है, लेकिन नेताओं की माताओं को अपमानित करने की प्रवृत्ति एक खतरनाक संकेत देती है. यह लोकतांत्रिक मर्यादा ही नहीं, बल्कि सामाजिक संस्कारों पर भी सीधा प्रहार है.
इसी कड़ी में गुरुवार को गया जिले में जन सुराज की सभा से पहले बड़ा हंगामा हो गया. प्रशांत किशोर (पीके) की सभा शुरू होने से पहले कुछ युवकों ने जन सुराज के पोस्टर फाड़ दिए और बैनर में आग लगा दी. हंगामा करने वाले युवकों के हाथ में राजद का झंडा था और वे “तेजस्वी यादव जिंदाबाद” के नारे लगा रहे थे. हालात इतने बिगड़े कि मौके पर मौजूद लोगों को पत्थरबाजी की आशंका सताने लगी और कई लोग सभा स्थल से लौटने लगे. पुलिस ने एक युवक को पकड़कर माहौल शांत कराने की कोशिश की, लेकिन अफरातफरी करीब डेढ़ घंटे तक जारी रही.
Politics : नारे, आरोप और चुटकिला… बिहार चुनाव अब मसालेदार!
पोस्टर जलाना, झंडा लहराना और नारेबाजी करना किसी भी लोकतांत्रिक बहस का हिस्सा नहीं होना चाहिए. यह वही राजनीति है जिसमें कभी एक नेता अपने विरोधी की माँ को लेकर अपमानजनक टिप्पणी करता है और फिर दूसरे पक्ष की सभाओं में पोस्टर जलाकर माहौल बिगाड़ा जाता है. सवाल उठता है कि क्या यह वही बिहार है जिसने लोकतांत्रिक आंदोलन और समाजवाद को जन्म दिया था?
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सभा में देर से पहुंचे प्रशांत किशोर ने भाजपा, राजद और कांग्रेस तीनों दलों पर तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि लालटेन है लेकिन तेल नहीं, केंद्र के पास युवा हैं लेकिन रोजगार नहीं. बिहार से रोजगार छीनकर फैक्ट्रियां गुजरात में लगाई गईं. उन्होंने नीतीश सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया और कहा कि इतना शानदार काम किया है कि जनता अब मंत्रियों को दौड़ा-दौड़ाकर भगा रही है.
Politics : नेताओं की जेब खाली – जनता की हंसी जारी!
पीके ने जनता से अपील की कि चुनाव के समय अगर कोई नेता पैसा दे तो ले लीजिए, क्योंकि यह वही पैसा है जो आपसे राशन और योजनाओं के नाम पर वसूला गया है. लेकिन वोट सोच-समझकर दीजिए.
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बिहार की राजनीति आज विरोधाभासों से भरी है. एक ओर गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़-सूखे की समस्याएं हैं, दूसरी ओर नेता एक-दूसरे की माताओं पर अपशब्द कहकर राजनीतिक बहस को शर्मनाक स्तर तक ले जा रहे हैं. सभाओं में पोस्टर जलाना और नारेबाजी करना लोकतंत्र की जगह अराजकता को जन्म देता है.
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यह समय है कि जनता सिर्फ नारे, जाति और भावनाओं में बहकर वोट न करे, बल्कि यह सोचे कि जिन नेताओं की राजनीति मर्यादा और सम्मान पर नहीं टिकती, वे जनता की तकदीर कैसे बदल पाएंगे? बिहार को राजनीति की इस गाली-गलौज और हिंसा वाली संस्कृति से बाहर निकलकर एक नए रास्ते की ओर बढ़ना होगा.