मोकामा: जब रोटी का संघर्ष इतना बड़ा हो जाए कि जीना बोझ लगने लगे, तब इंसान मौत को गले लगाने को मजबूर हो जाता है. मोकामा के सम्यागढ़ की मनीषा देवी ने भी शायद यही सोचा और शनिवार की दोपहर अपने दोनों बच्चों के साथ बाड़ी नदी में छलांग लगा दी. इस घटना ने पूरे गाँव को झकझोर दिया.
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गरीबी से त्रस्त मनीषा अपने बच्चों का भविष्य नहीं देख पा रही थीं. जिस सरकार का कर्तव्य था कि वह ऐसी माताओं को सहारा दे, वही सरकार आँखें मूँदे खड़ी रही. नतीजा यह हुआ कि एक छह साल की मासूम बच्ची ने अपनी माँ के साथ नदी में दम तोड़ दिया और एक दिव्यांग बच्चा किसी अजनबी की बहादुरी से बच पाया.
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चकसम्या पुल पर हुई इस घटना के बाद ग्रामीणों का दर्द आक्रोश में बदल गया. उनका कहना था कि रोज़-रोज़ महंगाई और बेरोज़गारी से लोग टूट रहे हैं, पर सरकार सिर्फ़ कागज़ों में योजनाएँ गिनाती है. “गरीबों का घर-घर राशन” और “सबका विकास” जैसे नारे अब खोखले साबित हो रहे हैं.
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स्थानीय पुलिस ने घटनास्थल पर डेरा डाल रखा है और एसडीआरएफ की टीम शव की तलाश कर रही है. लेकिन असली सवाल यह है कि क्या सरकार इस त्रासदी से सबक लेगी? क्या व्यवस्था यह समझेगी कि आर्थिक तंगी अब जान लेने लगी है?
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आज मोकामा रो रहा है, गाँव की गलियों में सन्नाटा पसरा है. लोग कह रहे हैं –
“अगर सरकार ने गरीबी से लड़ने की असली योजना बनाई होती, तो शायद मनीषा और उसकी बेटी ज़िंदा होतीं.”
रिपोर्ट: विकास कुमार, मोकामा.
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