Burnout: Symptoms, Risk Factors, Prevention, Treatment
25 से 30 की उम्र जीवन का सबसे निर्णायक दौर माना जाता है. पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी पाना, करियर जमाना, परिवार और रिश्तों की जिम्मेदारी निभाना. इन सबके बीच युवा सबसे ज्यादा मानसिक और शारीरिक दबाव झेलते हैं. यही दबाव धीरे-धीरे बर्नआउट सिंड्रोम में बदल सकता है.
बर्नआउट क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, बर्नआउट लगातार कार्य-तनाव का परिणाम है, जिसमें व्यक्ति थकान, काम के प्रति नकारात्मकता और कार्यक्षमता में गिरावट महसूस करता है. यह केवल मानसिक समस्या नहीं है, बल्कि सिरदर्द, पेट की समस्या, नींद की कमी और हाई ब्लड प्रेशर जैसी शारीरिक बीमारियों को भी जन्म देता है.
क्यों होता है यह दबाव?
- करियर की अनिश्चितता – स्थायी नौकरी न मिलना या कॉन्ट्रैक्ट-बेस्ड जॉब.
- अत्यधिक प्रतिस्पर्धा – कॉर्पोरेट और स्टार्टअप कल्चर का स्ट्रेस.
- ‘सक्सेस’ की परिभाषा – समाज और परिवार की अपेक्षाएँ.
- वर्क-लाइफ असंतुलन – लंबी वर्किंग आवर्स और निजी समय का अभाव.
- फियर ऑफ मिसिंग आउट (FOMO) – सोशल मीडिया पर दूसरों से तुलना. विशेषज्ञों की राय
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मनोवैज्ञानिक डॉ. रचना मेहता कहती हैं –
“25 से 30 की उम्र में लोग जीवन की ‘आइडेंटिटी क्राइसिस’ से गुजरते हैं. उन्हें लगता है कि अब तक करियर सेट हो जाना चाहिए, लेकिन अगर ऐसा न हो तो वे खुद को नाकाम समझने लगते हैं. यही सोच तनाव और बर्नआउट को बढ़ाती है.”
फिजिशियन डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं –
“लगातार तनाव हार्मोन ‘कॉर्टिसोल’ बढ़ा देता है, जिससे हाई बीपी, माइग्रेन, पेट दर्द और नींद न आना जैसी समस्याएँ होने लगती हैं. कई बार 28–30 की उम्र में ही युवा मरीज डायबिटीज या हार्ट प्रॉब्लम्स के शुरुआती लक्षण लेकर आते हैं.”
जाने-माने कॉर्पोरेट सलाहकार हर्षवर्धन जोशी के अनुसार –
“काम की भागदौड़ में युवा अक्सर ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ को नजरअंदाज कर देते हैं. असल में करियर में ग्रोथ तभी संभव है, जब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों का ख्याल रखा जाए. कंपनियों को भी ‘मेंटल हेल्थ पॉलिसी’ और फ्लेक्सिबल वर्क कल्चर पर ध्यान देना चाहिए.”
समाधान और बचाव
- रूटीन में बैलेंस – 8 घंटे से अधिक लगातार काम न करें, नींद और भोजन को प्राथमिकता दें.
- स्मॉल ब्रेक्स – काम के बीच छोटी-छोटी छुट्टियाँ लें, वीकेंड में पूरी तरह डिजिटल डिटॉक्स अपनाएँ.
- खुली बातचीत – परिवार और दोस्तों से अपनी परेशानी साझा करें, जरूरत पड़े तो काउंसलिंग लें.
- फिटनेस और मेडिटेशन – व्यायाम, योग और ध्यान तनाव कम करते हैं.
- री-डिफाइन सक्सेस – दूसरों से तुलना की बजाय अपने लिए वास्तविक लक्ष्य तय करें.
- 25–30 की उम्र में करियर का दबाव स्वाभाविक है, लेकिन अगर यह दबाव बर्नआउट में बदल जाए तो मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों खतरे में पड़ जाते हैं. इस दौर में स्वयं की देखभाल और संतुलन ही सबसे बड़ा मंत्र है.

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