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संयुक्त परिवार बनाम एकल परिवार: बदलती प्राथमिकताएं और सामाजिक असर

भारत में पारंपरिक रूप से संयुक्त परिवार (Joint Family) समाज की रीढ़ रहा है. लेकिन तेज़ रफ्तार ज़िंदगी, बदलते करियर विकल्प और बढ़ती व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह ने एकल परिवारों (Nuclear Family) को भी सामान्य बना दिया है. इस बदलाव के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और पारिवारिक असर को विशेषज्ञ अलग-अलग नज़रिए से समझाते हैं.

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बड़ों का सहारा बनाम निजता की चाह

दिल्ली विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री डॉ. रचना मिश्रा बताती हैं –
“संयुक्त परिवार में युवा पीढ़ी को बड़ों का सहारा, मार्गदर्शन और आर्थिक सुरक्षा मिलती है. लेकिन आधुनिक पीढ़ी निजता (Privacy) और आत्मनिर्भरता को महत्व देती है. यही कारण है कि शहरी क्षेत्रों में एकल परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है.”

मनोवैज्ञानिक डॉ. अर्पिता सिंह कहती हैं –
“निजता की चाह गलत नहीं है, लेकिन इसके चलते कई बार युवा दंपति तनाव और अकेलेपन का सामना करते हैं. वहीं संयुक्त परिवार में दखलअंदाजी और पर्सनल स्पेस की कमी तनाव का कारण बन सकती है.”

संयुक्त परिवार में बच्चों का पालन-पोषण – फायदे और चुनौतियां

रिलेशनशिप काउंसलर अनुज मेहता के मुताबिक –
“संयुक्त परिवार में बच्चों को साझा संस्कार, अनुशासन और भावनात्मक सुरक्षा मिलती है. दादा-दादी या चाचा-चाची की मौजूदगी बच्चों की परवरिश में सहायक होती है.”
हालांकि, वे यह भी जोड़ते हैं –
“संयुक्त परिवारों में बच्चों की परवरिश पर विचारों में मतभेद भी सामने आते हैं. माता-पिता और दादा-दादी के पालन-पोषण के तरीकों में टकराव बच्चों के सामने कंफ्यूजन पैदा कर सकता है.”

त्योहारों में संयुक्त परिवार का महत्व – संस्कृति और बंधन

त्योहारों के मौके पर संयुक्त परिवार की सांस्कृतिक और सामाजिक अहमियत और भी बढ़ जाती है.
डॉ. मिश्रा बताती हैं –
“दिवाली, होली या शादी-ब्याह जैसे मौकों पर संयुक्त परिवार रिश्तों की मजबूती का प्रतीक होते हैं. यहां त्योहार सिर्फ रस्में नहीं बल्कि भावनात्मक जुड़ाव और पीढ़ियों के बीच संबंधों को गहरा करने का अवसर होते हैं.”

आज की युवा पीढ़ी के सामने संयुक्त परिवार और एकल परिवार दोनों के अपने फायदे और चुनौतियां हैं. संयुक्त परिवार जहां सुरक्षा और परंपराओं का सहारा देते हैं, वहीं एकल परिवार स्वतंत्रता और निजता का स्पेस देते हैं.

Relationship Tips: बच्चों के पालन-पोषण पर मतभेद और समाधान

👉 समाजशास्त्री और काउंसलर्स का मानना है कि समाधान किसी एक मॉडल को चुनने में नहीं, बल्कि दोनों के बीच संतुलन खोजने में है – यानी बड़ों का मार्गदर्शन और परंपराओं का साथ, लेकिन साथ ही युवा पीढ़ी की निजता और स्वतंत्रता का सम्मान.

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