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कानूनी जागरूकता: घरेलू हिंसा और प्रॉपर्टी विवाद में महिलाओं के अधिकार

घरेलू हिंसा में महिलाओं के कानूनी अधिकार

वरिष्ठ वकील स्मिता कुमारी की राय

  • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक या मौखिक उत्पीड़न से सुरक्षा का अधिकार है.
  • पीड़िता महिला पुलिस स्टेशन या प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास शिकायत दर्ज कर सकती है.
  • कानून में रेसिडेंस ऑर्डर (घर में रहने का अधिकार), प्रोटेक्शन ऑर्डर (उत्पीड़न रोकने का आदेश) और मॉनिटरी रिलीफ (आर्थिक मदद) का प्रावधान है.
  • यदि तुरंत खतरा हो तो धारा 498A IPC और धारा 323, 506 IPC जैसे प्रावधान लागू किए जा सकते हैं.

रिलेशनशिप काउंसलर नेहा की राय

  • हिंसा सिर्फ शारीरिक नहीं, भावनात्मक भी हो सकती है.
    पीड़िता को पहले सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए—परिवार, मित्र या महिला सहायता केंद्र.
    हिंसा की घटना का रिकॉर्ड रखना (फोटो, चैट, मेडिकल रिपोर्ट) कानूनी कार्रवाई में मदद करता है.
  • प्रतिष्ठित समाजशास्त्री और सार्वजनिक बौद्धिक, डॉ. दीपंकर गुप्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के समाज प्रणाली केंद्र (Centre for the Study of Social Systems) में प्रोफेसर रहे हैं।
  • ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में कई महिलाएं अपने अधिकार नहीं जानतीं, जिसके कारण वे चुपचाप हिंसा सहती हैं.
    सामाजिक दबाव, आर्थिक निर्भरता और ‘घर की इज्जत’ का डर महिलाओं को आगे आने से रोकता है.
    जागरूकता अभियान और सामुदायिक सहयोग समूह हिंसा की रिपोर्टिंग बढ़ा सकते हैं.

प्रॉपर्टी विवाद में महिलाओं के अधिकार

  • वरिष्ठ वकील स्मिता कुमारी की राय
  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005) के बाद बेटियों को बेटों के बराबर पैतृक संपत्ति में अधिकार मिला है—भले ही पिता का निधन कब हुआ हो.
  • शादीशुदा महिलाएं पति की संपत्ति में हिस्सेदारी रखती हैं, और तलाक या पति की मृत्यु पर मैट्रिमोनियल प्रॉपर्टी के अधिकार लागू होते हैं.
  • वसीयत (Will) होने पर भी, यदि वह धोखाधड़ी से बनी हो तो अदालत में चुनौती दी जा सकती है.
  • मुस्लिम महिलाओं के लिए संपत्ति का अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तय होता है—जिसमें हिस्सा धर्मशास्त्र के मुताबिक मिलता है, लेकिन महिला उसे बेच/ट्रांसफर कर सकती है.
रिलेशनशिप काउंसलर की राय    
  • प्रॉपर्टी विवाद अक्सर रिश्तों में कड़वाहट और स्थायी दूरी पैदा करते हैं.
  • ऐसे मामलों में भावनात्मक संवाद और मध्यस्थता (mediation) का सहारा लेना बेहतर है, ताकि कानूनी लड़ाई लंबी न खिंचे.
समाजशास्त्री की राय    

कई परिवारों में बेटियों को ‘हिस्सा छोड़ने’ के लिए सामाजिक दबाव डाला जाता है, जो आर्थिक अन्याय है.
महिलाओं का वित्तीय अधिकार छिनना न केवल व्यक्तिगत नुकसान है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी आर्थिक असमानता को बढ़ाता है.

व्यावहारिक सुझाव

  1. कानून पढ़ें, समझें – अपने धर्म और समुदाय के अनुसार लागू कानूनों की जानकारी लें.
  2. दस्तावेज सुरक्षित रखें – संपत्ति के कागजात, हिंसा के सबूत, बैंक स्टेटमेंट.
  3. सहायता केंद्र से जुड़ें – महिला हेल्पलाइन (1091), राष्ट्रीय महिला आयोग, लीगल एड क्लिनिक.
  4. कानूनी सलाह लें – मुफ्त कानूनी सहायता केंद्र (Legal Services Authority) से संपर्क करें.
  5. भावनात्मक सहयोग पाएं – काउंसलर या सपोर्ट ग्रुप से जुड़ें, ताकि मानसिक तनाव कम हो. महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा और प्रॉपर्टी विवाद में अपने कानूनी अधिकार जानना सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण का आधार है. जैसा कि वरिष्ठ वकील ने कहा, “कानून आपके साथ है, लेकिन उसका फायदा तभी मिलेगा जब आप आवाज उठाएंगी. ” समाजशास्त्री मानते हैं कि सामूहिक जागरूकता महिलाओं को चुप्पी से बाहर लाती है, और काउंसलर के शब्दों में, “सुरक्षा पहले, न्याय बाद में—लेकिन दोनों जरूरी हैं. ”

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