किशोरावस्था में पढ़ाई का दबाव, सोशल मीडिया का असर, रिश्तों की जटिलताएं और भविष्य की चिंता. ये सभी मिलकर एक ऐसा तनाव पैदा करते हैं, जो सिर्फ़ मन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि शरीर पर भी असर डालता है . इसे चिकित्सा विज्ञान में साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर कहा जाता है, जहां मानसिक तनाव शारीरिक लक्षणों में बदल जाता है .
तनाव का अदृश्य बोझ
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रितु मल्होत्रा बताती हैं, “अक्सर किशोर पेट दर्द, सिरदर्द, थकान, मांसपेशियों में जकड़न या त्वचा पर लाल चकत्तों की शिकायत लेकर आते हैं . मेडिकल जांच में कोई शारीरिक बीमारी नहीं मिलती, लेकिन असल वजह मानसिक दबाव होती है .”
स्कूल में प्रदर्शन का दबाव, साथियों से तुलना, या घर के माहौल में तनाव—ये सभी लंबे समय तक रहने पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) को प्रभावित करते हैं, जिससे बार-बार बीमार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है .
दिमाग और शरीर का कनेक्शन
मनोचिकित्सक डॉ. समीर गुप्ता कहते हैं, “दिमाग और शरीर एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं . जब हम तनाव में होते हैं, तो कॉर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाते हैं . यह पेट में एसिड बढ़ा सकता है, मांसपेशियों में दर्द पैदा कर सकता है या नींद खराब कर सकता है . किशोर अक्सर इन लक्षणों को ‘सिर्फ़ थकान’ मानकर नजरअंदाज कर देते हैं .”
डॉक्टर कहते हैं – नजरअंदाज न करें
विशेषज्ञ मानते हैं कि बार-बार होने वाले लेकिन अस्पष्ट शारीरिक लक्षणों को ‘नाटक’ या ‘बहाना’ कहकर टालना गलत है . समय पर पहचान और मदद से ये समस्याएं पूरी तरह ठीक हो सकती हैं .
क्या करें?
- तनाव कम करने के लिए नियमित व्यायाम और योग
- मोबाइल/स्क्रीन टाइम सीमित करना
- खुलकर बातचीत – माता-पिता और दोस्तों से
- स्कूल काउंसलर या मनोवैज्ञानिक से समय पर सलाह लेना

डॉ. मल्होत्रा कहती हैं, “अगर हम किशोरों को यह समझा दें कि मदद लेना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है, तो कई साइकोसोमैटिक समस्याएं शुरुआती चरण में ही खत्म हो सकती हैं .”
Leave a Reply