सहरसा : सहरसा की एनएच-107 सड़क अब सड़क कम, सरकारी ‘एडवेंचर पार्क’ ज्यादा लगने लगी है. बैजनाथपुर चौक के पास तो हालात ऐसे हैं कि आपको यह समझने में वक्त लगेगा — ये गड्ढा है या मिनी तालाब. फर्क बस इतना है कि टिकट काटने वाला कोई नहीं, हाँ, अपनी गाड़ी जरूर खुद ही डुबानी पड़ेगी.
Politics : जनता से डरने लगे नेताजी?
मानसून ने वैसे तो पूरे बिहार में अपना जलवा बिखेरा है, लेकिन यहाँ तो पानी ने स्थायी ठिकाना बना लिया है. कीचड़, जलजमाव और मटरगश्ती करते मछलियों के बीच, जनता ने भी सोच लिया है कि जब सरकार ‘रोड’ नहीं दे सकती तो हम ‘स्विमिंग पूल’ में ही विरोध दर्ज कराएँगे. सो, लोग गड्ढे में बैठकर नारेबाज़ी कर रहे हैं — मानो ये सड़क नहीं, ‘जनता जल संसद’ हो.
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स्थानीय रंजीत यादव का कहना है कि “ये सड़क सहरसा, मधेपुरा और पूर्णिया को जोड़ने वाली जीवनरेखा है” — मगर हालत ऐसी है कि ये जीवनरेखा अब ‘डूबने की रेखा’ बन चुकी है. एनएचआई का निर्माण कार्य महीनों से अधूरा पड़ा है और विभाग की चुप्पी, नेताओं की व्यस्त राजनीति और अफसरों की फाइलों में दबे कागज, सभी मिलकर गड्ढों को और गहरा कर रहे हैं.
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जनता का तंज भी लाजवाब है — “नेताजी, अगर ये गड्ढे ऐसे ही रहे तो अगली बार चुनाव प्रचार में नाव से आइएगा, वोट भी पानी में ही डाल देंगे.”
अब सवाल ये है कि नेताजी का डर किससे है — जनता के गुस्से से या गड्ढों की गहराई से?
सहरसा से विकास कुमार की रिपोर्ट …
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